Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
२१६
स्थानाङ्गसूत्रम्
३. वल्लीप्रलम्ब कोरक-- वल्ली (लता) के फल की कलिका। ४. मेंदविषाण कोरक- मेंढ़े के सींग के समान फल वाली वनस्पति-विशेष की कलिका। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे
१. आम्रप्रलम्ब-कोरक समान-- जो सेवा करने पर उचित अवसर पर उचित उपकार रूप फल प्रदान करे (प्रत्यपुकार करे)।
२. तालप्रलम्ब-कोरक समान— जो दीर्घकाल तक खूब सेवा करने पर उपकाररूप फल प्रदान करे। ३. वल्ली प्रलम्ब-कोरक समान—जो सेवा करने पर शीघ्र और कंठिनाई बिना फल प्रदान करे।
४. मेंदू विषाण-कोरक समान— जो सेवा करने पर भी केवल मीठे वचन ही बोले, किन्तु कोई उपकार न करे (५५)। भिक्षाक-सूत्र
५६- चत्तारि घुणा पण्णत्ता, तं जहा तयक्खाए, छल्लिक्खाए, कट्ठक्खाए, सारक्खाए।
एवामेव चत्तारि भिक्खागा पण्णत्ता, तं जहा—तयक्खायसमाणे, जाव [छल्लिक्खायसमाणे कट्ठक्खायसमाणे] सारक्खायसमाणे।
१. तयक्खायसमाणस्स णं भिक्खागस्स सारक्खायसमाणे तवे पण्णत्ते। २. सारक्खायसमाणस्स णं भिक्खागस्स तयक्खायसमाणे तवे पण्णत्ते। ३. छल्लिक्खायसमाणस्स णं भिक्खागस्स कट्ठक्खायसमाणे तवे पण्णत्ते। ४. कट्ठक्खायसमाणस्स णं भिक्खागस्स छल्लिक्खायसमाणे तवे पण्णत्ते। घुण (काष्ठ-भक्षक कीड़े) चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. त्वक्-खाद- वृक्ष की ऊपरी छाल को खाने वाला। २. छल्ली-खाद- छाल के भीतरी भाग को खाने वाला। ३. काष्ठ-खाद- काष्ट को खाने वाला। ४. सार-खाद— काष्ठ के मध्यवर्ती सार को खाने वाला। इसी प्रकार भिक्षाक (भिक्षा-भोजी साधु) चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. त्वक्-खाद-समान- नीरस, रूक्ष, अन्त-प्रान्त आहारभोजी साधु। २. छल्ली-खाद-समान- अलेप आहारभोजी साधु। ३. काष्ठ-खाद-समान- दूध, दही, घृतादि से रहित (विगयरहित) आहारभोजी साधु । ४. सार-खाद-समान- दूध, दही, घृतादि से परिपूर्ण आहारभोजी साधु । १. त्वक्-खाद-समान भिक्षाक का तप सार-खाद-घुण के समान कहा गया है। २. सार-खाद-समान भिक्षाक का तप त्वक्-खाद-घुण के समान कहा गया है। ३. छल्ली-खाद-समान भिक्षाक का तप काष्ठ-खाद-घुण के समान कहा गया है।