Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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स्थानाङ्गसूत्रम्
___इच्चेतेहिं चउहिं ठाणेहिं अहुणोववण्णे णेरइए[णिरयलोगंसिइच्छेज्जा माणुसं लोगहव्वमागच्छित्तए] णो चेवणं संचाएति हव्वमागच्छित्तए।
नरकलोक में तत्काल उत्पन्न हुआ नैरयिक चार कारणों से शीघ्र ही मनुष्यलोक में आने की इच्छा करता है, किन्तु आ नहीं सकता
१. तत्काल उत्पन्न नैरयिक नरकलोक में होने वाली वेदना का वेदन करता हुआ शीघ्र ही मनुष्यलोक में आने की इच्छा करता है, किन्तु आ नहीं सकता। .
२. तत्काल उत्पन्न नैरयिक नरकलोक में नरक-पालों के द्वारा समाक्रांत-पीड़ित होता हुआ शीघ्र ही मनुष्यलोक में आने की इच्छा करता है, किन्तु आ नहीं सकता।
३. तत्काल उत्पन्न नैरयिक शीघ्र ही मनुष्यलोक में आने की इच्छा करता है, किन्तु नरकलोक में वेदन करने योग्य कर्मों के क्षीण हुए बिना, उनको भोगे बिना, उनके निर्जीर्ण हुए बिना आ नहीं सकता।
४. तत्काल उत्पन्न नैरयिक शीघ्र ही मनुष्यलोक में आने की इच्छा करता है, किन्तु नारकायुकर्म के क्षीण हुए बिना, उसको भोगे बिना, उसके निर्जीर्ण हुए बिना आ नहीं सकता। - इन उक्त चार कारणों से नरकलोक में तत्काल उत्पन्न नैरयिक शीघ्र मनुष्यलोक में आने की इच्छा करता है, किन्तु आ नहीं सकता (५८)। संघाटी-सूत्र
५९– कप्पंति णिग्गंथीणं चत्तारि संघाडीओ धारित्तए वा परिहरित्तए वा, तं जहा—एगं दुहत्थवित्थारं, दो तिहत्थवित्थारा, एगं चउहत्थवित्थारं।
निर्ग्रन्थी साध्वियों को चार संघाटियां (साड़ियां) रखने और पहिनने के लिए कल्पती हैं १. दो हाथ विस्तारवाली एक संघाटी— जो उपाश्रय में ओढ़ने के काम आती है। २. तीन हाथ विस्तारवाली दो संघाटी- उनमें से एक भिक्षा लेने को जाते समय ओढ़ने के लिए। ३. दूसरी शौच जाते समय ओढ़ने के लिए।
४. चार हाथ विस्तारवाली एक संघाटी— व्याख्यान-परिषद् में जाते समय ओढ़ने के लिए (५९)। ध्यान-सूत्र
६०- चत्तारि झाणा पण्णत्ता, तं जहा अट्टे झाणे, रोद्दे झाणे, धम्मे झाणे, सुक्के झाणे। ध्यान चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. आर्तध्यान- किसी भी प्रकार के दुःख आने पर शोक तथा चिन्तामय मन की एकाग्रता। २. रौद्रध्यान- हिंसादि पापमयी क्रूर मानसिक परिणति की एकाग्रता : ३. धर्म्यध्यान- श्रुतधर्म और चारित्रधर्म के चिन्तन की एकाग्रता। ४. शुक्लध्यान- कर्मक्षय के कारणभूत शुद्धोपयोग में लीन रहना (६०)। ६१- अट्टझाणे चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा