Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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ခုခု
स्थानाङ्गसूत्रम्
अण्णाणदोसे, आमरणंतदोसे।
रौद्रध्यान के चार लक्षण कहे गये हैं, जैसे१. उत्सन्नदोष- हिंसादि किसी एक पाप में निरन्तर प्रवृत्ति करना। २. बहुदोष— हिंसादि सभी पापों के करने में संलग्न करना। ३. अज्ञानदोष-कुशास्त्रों के संस्कार से हिंसादि अधार्मिक कार्यों को धर्म मानना। ४. आमरणान्त दोष— मरणकाल तक भी हिंसादि करने का अनुताप न होना (६४)।
विवेचन— निरन्तर रुद्र या क्रूर कार्यों को करना, आरम्भ-समारम्भ में लगे रहना, उनको करते हुए जीवरक्षा का विचार न करना, झूठ बोलते और चोरी करते हुए भी पर-पीड़ा का विचार न करके आनन्दित होना, ये सर्व रौद्रध्यान के कार्य कहे गये हैं। शास्त्रों में आर्तध्यान को तिर्यंग्गति का कारण और रौद्रध्यान को नरकगति का कारण कहा गया है। ये दोनों ही अप्रशस्त या अशुभ ध्यान हैं।
६५- धम्मे झाणे चउविहे चउप्पडोयारे पण्णत्ते, तं जहा—आणाविजए, अवायविजए, विवागविजए, संठाणविजए।
(स्वरूप, लक्षण, आलम्बन और अनुपेक्षा इन) चार पदों में अवतरित धर्म्यध्यान चार प्रकार का कहा गया है, जैसे
१. आज्ञाविचय— जिन-आज्ञा रूप प्रवचन के चिन्तन में संलग्न रहना। २. अपायविचय- संसार-पतन के कारणों का विचार करते हुए उनसे बचने का उपाय करना।
पाय करना। . ३. विपाकविचय– कर्मों के फल का विचार करना। ४. संस्थानविचय- जन्म-मरण के आधारभूत पुरुषाकार लोक के स्वरूप का चिन्तन करना (६५)।
६६- धम्मस्स णं झाणस्स चत्तारि लक्खणा पण्णत्ता, तं जहा—आणारुई, णिसग्गरुई, सुत्तरुई, ओगाढरुई।
धर्म्यध्यान के चार लक्षण कहे गये हैं, जैसे१. आज्ञारुचि-जिन-आज्ञा के मनन-चिन्तन में रुचि, श्रद्धा एवं भक्ति होना। २. निसर्गरुचि- धर्मकार्यों के करने में स्वाभाविक रुचि होना। ३. सूत्ररुचि- आगम-शास्त्रों के पठन-पाठन में रुचि होना। ४. अवगाढ़रुचि- द्वादशाङ्गवाणी के अवगाहन में प्रगाढ़ रुचि होना (६६)।
६७– धम्मस्स णं झाणस्स चत्तारि आलंबणा पण्णत्ता, तं जहा—वायणा, पडिपुच्छणा, परियट्टणा, अणुप्पेहा।
धर्म्यध्यान के चार आलम्बन कहे गये हैं, जैसे१. वाचना- आगम-सूत्र आदि का पठन करना। २. प्रतिप्रच्छना— शंका-निवारणार्थ गुरुजनों से पूछना। ३. परिवर्तन – पठित सूत्रों का पुनरावर्तन करना।