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चतुर्थ स्थान प्रथम उद्देश
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शुद्ध-अशुद्ध-सूत्र ___२४- चत्तारि वत्था पण्णत्ता, तं जहा सुद्धे णामं एगे सुद्धे, सुद्धे णाम एगे असुद्धे, असुद्धे णाम एगे सुद्धे, असुद्धे णाम एगे असुद्धे।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा सुद्धे णामं एगे सुद्धे, [सुद्धे णामं एगे असुद्धे, असुद्धे णाम एगे सुद्धे, असुद्धे णामं एगे असुद्धे।]
चार प्रकार के वस्त्र कहे गये हैं, जैसे
१.कोई वस्त्र प्रकृति से (शुद्ध तन्तु आदि के द्वारा निर्मित होने से) शुद्ध होता है और (ऊपरी मलादि से रहित होने के कारण वर्तमान) स्थिति से भी शुद्ध होता है।
२. कोई वस्त्र प्रकृति से शुद्ध, किन्तु स्थिति से अशुद्ध होता है। ३. कोई वस्त्र प्रकृति से अशुद्ध, किन्तु स्थिति से शुद्ध होता है। ४. कोई वस्त्र प्रकृति से अशुद्ध और स्थिति से भी अशुद्ध होता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे— १. कोई पुरुष जाति से भी शुद्ध होता है और गुण से भी शुद्ध होता है। २. कोई पुरुष जाति से तो शुद्ध होता है, किन्तु गुण से अशुद्ध होता है। ३. कोई पुरुष जाति से अशुद्ध होता है, किन्तु गुण से शुद्ध होता है। ४. कोई पुरुष जाति से अशुद्ध और गुण से भी अशुद्ध होता है (२४)।
२५– चत्तारि वत्था पण्णत्ता, तं जहा सुद्धे णामं एगे सुद्धपरिणए, सुद्धे णामं एगे असुद्धपरिणए, असुद्धे णामं एगे सुद्धपरिणए, असुद्धे णामं एगे असुद्धपरिणए।
__एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा सुद्धे णाम एगे सुद्धपरिणए, सुद्धे णाम एगे असुद्धपरिणए, असुद्धे णाम एगे सुद्धपरिणए, असुद्धे णामं एगे असुद्धपरिणए।
पुनः वस्त्र चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. कोई वस्त्र प्रकृति से शुद्ध होता है और शुद्ध-परिणत होता है। २. कोई वस्त्र प्रकृति से शुद्ध, किन्तु अशुद्ध-परिणत होता है। ३. कोई वस्त्र प्रकृति से अशुद्ध, किन्तु शुद्ध-परिणत होता है। ४. कोई वस्त्र प्रकृति से अशुद्ध और अशुद्ध-परिणत होता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. कोई पुरुष जाति से शुद्ध होता है और शुद्ध-परिणत होता है। २. कोई पुरुष जाति से तो शुद्ध, किन्तु अशुद्ध-परिणत होता है। ३. कोई पुरुष जाति से अशुद्ध, किन्तु शुद्ध-परिणत होता है। ४. कोई पुरुष जाति से भी अशुद्ध और परिणति से भी अशुद्ध होता है (२५)।