Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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चतुर्थ स्थान- प्रथम उद्देश
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३. कोई पुरुष ऐश्वर्य से प्रणत, किन्तु उन्नत व्यवहार वाला होता है। . ४. कोई पुरुष ऐश्वर्य से प्रणत और प्रणत व्यवहार वाला होता है (१०)।]
११- [चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—उण्णते णाममेगे उण्णतपरक्कमे, उण्णते णाममेगे पणतपरक्कमे, पणते णाममेगे उण्णतपरक्कमे, पणते णाममेगे पणतपरक्कमे।]
[पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. कोई पुरुष ऐश्वर्य से उन्नत और उन्नत पराक्रम वाला होता है। २. कोई पुरुष ऐश्वर्य से उन्नत, किन्तु प्रणत पराक्रम वाला होता है। ३. कोई पुरुष ऐश्वर्य से प्रणत, किन्तु उन्नत पराक्रम वाला होता है।
४. कोई पुरुष ऐश्वर्य से प्रणत और प्रणत पराक्रम वाला होता है (११)।] ऋजु-वक्र-सूत्र
१२- चत्तारि रुक्खा पण्णत्ता, तं जहाउजू णाममेगे उज्जू, उज्जू णाममेगे वंके, चउभंगो ४। एवं जहा उन्नतपणतेहि गमो तहा उजू वंकेहि वि भाणियव्वो। जाव परक्कमे [वंके णाममेगे उजू, वंके णाममेगे वंके ।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—उज्जू णाममेगे उज्जू ४, [उजू णाममेगे वंके, वंके णाममेगे उज्जू, वंके णाममेगे वंके ]।
वृक्ष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे
१. कोई वृक्ष शरीर से ऋजु (सरल-सीधा) होता है और (यथासमय फलादि देने रूप) कार्य से भी ऋजु होता है।
२. कोई वृक्ष शरीर से ऋजु होता है, किन्तु (यथासमय फलादि देने रूप) कार्य से वक्र होता है। (यथासमय फलादि नहीं देता है।)
३. कोई वृक्ष शरीर से वक्र (टेढ़ा-मेढ़ा) होता है, किन्तु कार्य से ऋजु होता है। ४. कोई वृक्ष शरीर से भी वक्र होता है और कार्य से भी वक्र होता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे
१. कोई पुरुष बाहर (शरीर, गति, चेष्टादि) से ऋजु होता है और अन्तरंग से भी ऋजु (निश्छल व्यवहार वाला) होता है।
२. कोई पुरुष बाहर से ऋजु होता है, किन्तु अन्तरंग से वक्र (कुटिल व्यवहार वाला) होता है। ३. कोई पुरुष बाहर से वक्र (कुटिल चेष्टा वाला) होता है, किन्तु अन्तरंग से ऋजु होता है। ४. कोई पुरुष बाहर से भी वक्र और अंतरंग से भी वक्र होता है (१२)।
१३– चत्तारि रुक्खा पण्णत्ता, तं जहा—उजू णाममेगे उज्जुपरिणते, उज्जु णाममेगे वंकपरिणते, वंके णाममेगे उज्जुपरिणते, वंके णाममेगे वंकपरिणते।