Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
१७८
स्थानाङ्गसूत्रम्
१. प्रश्न - भदन्त! तीन पल्योपम की स्थितिवाले किल्विषिक देव कहाँ निवास करते हैं ?
उत्तर. आयुष्मन् ! ज्योतिष्क देवों के ऊपर तथा सौधर्म-ईशानकल्पों के नीचे, तीन पल्योपम की स्थितिवाले किल्विषिक देव निवास करते हैं।
२. प्रश्न - भदन्त ! तीन सागरोपम की स्थितिवाले किल्विषिक देव कहाँ निवास करते हैं ?
उत्तर- आयुष्मन्! सौधर्म और ईशान कल्पों के ऊपर तथा सनत्कुमार माहेन्द्रकल्पों से नीचे, तीन सागरोपम की स्थितिवाले देव निवास करते हैं।
३. प्रश्न— भदन्त! तेरह सागरोपम की स्थितिवाले किल्विषिक देव कहाँ निवास करते हैं ?
उत्तर- आयुष्मन्! ब्रह्मलोककल्प के ऊपर तथा लान्तककल्प के नीचे तेरह सागरोपम की स्थितिवाले किल्विषिक देव निवास करते हैं (४६६)। देवस्थिति-सूत्र
४६७– सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो बाहिरपरिसाए देवाणं तिण्णि पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। ४६८- सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो अभितरपरिसाए देवीणं तिण्णि पलिओवमाइं ठिती पण्णत्ता। ४६९-ईसाणस्स णं देविंदस्स देवरण्णो बाहिरपरिसाए देवीणं तिण्णि पलिओवमाइं ठिती पण्णत्ता।
देवेन्द्र, देवराज शक्र की बाह्य परिषद् के देवों की स्थिति तीन पल्योपम की कही गई है (४६७) । देवेन्द्र, देवराज शक्र की आभ्यन्तर परिषद् की देवियों की स्थिति तीन पल्योपम की कही गई है (४६८)। देवेन्द्र, देवराज ईशान की बाह्य परिषद् की देवियों की स्थिति तीन पल्योपम की कही गई है (४६९)। प्रायश्चित्त-सूत्र
४७०– तिविहे पायच्छित्ते पण्णत्ते, तं जहा–णाणपायच्छित्ते, दंसणपायच्छित्ते, चरित्तपायच्छित्ते।
प्रायश्चित्त तीन प्रकार का कहा गया है—ज्ञानप्रायश्चित्त, दर्शनप्रायश्चित्त और चारित्रप्रायश्चित्त (४७०)।
४७१– तओ अणुग्घातिमा पण्णत्ता, तं जहा- हत्थकम्मं करेमाणे, मेहुणं सेवेमाणे, राईभोयणं भुंजमाणे।
तीन अनुद्घात (गुरु) प्रायश्चित्त के योग्य कहे गये हैं—हस्त-कर्म करने वाला, मैथुन सेवन करने वाला और रात्रिभोजन करने वाला (४७१)। ___४७२- तओ पारंचिता पण्णत्ता, तं जहा–दुढे पारंचिते, पमत्ते पारंचिते, अण्णमण्णं करेमाणे पारंचिते।
तीन पारांचित प्रायश्चित्त के भागी कहे गये हैं दुष्ट पारांचित (तीव्रतम कषायदोष से दूषित तथा विषयदुष्ट साध्वीकामुक), प्रमत्त पारांचित (स्त्यानर्द्धिनिद्रावाला) और अन्योन्य मैथुन सेवन करने वाला (४७२)।
४७३- तओ अणवट्टप्पा पण्णत्ता, तं जहा साहम्मियाणं तेणियं करेमाणे, अण्णधम्मियाणं