Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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तृतीय स्थान • चतुर्थ उद्देश
३. द्रव्यनेत्र के साथ केवलज्ञान और केवलदर्शन का धारक श्रमण - महान् त्रिचक्षु कहा गया है (४९९) । अभिसमागम-सूत्र
५०० - तिविधे अभिसमागमे पण्णत्ते, तं जहा— उड्डुं, अहं, तिरियं ।
जया णं तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा अतिसेसे णाणदंसणे समुप्पज्जति, से णं तप्पढमताए उड्डमभिसमेति, ततो तिरियं ततो पच्छा अहे । अहोलोगे णं दुरभिगमे पण्णत्ते समणाउसो ! अभिसमागम (वस्तु-स्वरूप का यथार्थज्ञान) तीन प्रकार का कहा गया है — ऊर्ध्व - अभिसमागम, तिर्यक्अभिसमागम और अधः - अभिसमागम ।
जब तथारूप श्रमण-माहन को अतिशय-युक्त ज्ञान दर्शन उत्पन्न होता है, तब वह सर्वप्रथम ऊर्ध्वलोक को जानता है । तत्पश्चात् तिर्यक्लोक को जानता है और उसके पश्चात् अधोलोक को जानता है । आयुष्मन् श्रमण ! अधोलोक सबसे अधिक दुरभिगम कहा गया है (५००) ।
ऋद्धि-सूत्र
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५०१ - तिविधा इड्डी पण्णत्ता, तं जहा—देविड्डी, राइड्डी, गणिड्डी ।
ऋद्धि तीन प्रकार की कही गई है— देव ऋद्धि, राज्य - ऋद्धि और गणि (आचार्य) - ऋद्धि (५०१) । विमाणिड्डी, विगुव्वणिड्डी, परियारणिड्ढी । सचित्ता, अचित्ता, मीसिता ।
५०२- -देविड्डी तिविहा पण्णत्ता, तं जहा अहवा— देविड्ढीं तिविहा पण्णत्ता, तं जहा
देव - ऋद्धि तीन प्रकार की कही गई है— विमान-ऋद्धि, वैक्रिय ऋद्धि और परिचारण- ऋद्धि ।
अथवा देव ऋद्धि तीन प्रकार की कही गई है— सचित्त - ऋद्धि, (देवी- देवादि का परिवार) अचित्त ऋद्धि
वस्त्र
व- आभूषणादि और मिश्र - ऋद्धि वस्त्राभरणभूषित देवी आदि (५०२) ।
५०३ – राइड्डी तिविधा पण्णत्ता, तं जहा——रण्णो अतियाणिड्डी, रण्णो णिजाणिड्डी, रण्णो बल-वाहण - कोस- कोट्ठागारिड्डी ।
अहवा— राइड्डी तिविहा पण्णत्ता, 'जहा सचित्ता, अचित्ता, मीसिता ।
राज्य - ऋद्धि तीन प्रकार की कही गई है
१. अतियान - ऋद्धि नगरप्रवेश के समय की जाने वाली तोरण द्वारादि रूप शोभा ।
२. निर्याण - ऋद्धि नगर से बाहर निकलने का ठाठ ।
३. कोष -कोष्ठागार - ऋद्धि खजाने और धान्य- भाण्डारादि रूप ।
अथवा राज्य ऋद्धि तीन प्रकार की कही गई है
१. सचित्त - ऋद्धि रानी, सेवक, परिवारादि ।
२. अचित्त - ऋद्धि
वस्त्र, आभूषण, अस्त्र-शस्त्रादि । ३. मिश्र - ऋद्धि अस्त्र-शस्त्र धारक सेना आदि (५०३) ।