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तृतीय स्थान– चतुर्थ उद्देश
१८९ सुअधिज्झितं भवति तदा सुज्झाइतं भवति, जया सुझाइतं भवति तदा सुतवस्सितं भवति, से सुअधिज्झिते सुज्झाइते सुतवस्सिते सुयक्खाते णं भगवता धम्मे पण्णत्ते।
भगवान् ने तीन प्रकार का धर्म कहा है सु-अधीत (समीचीन रूप से अध्ययन किया गया)। सु-ध्यात (समीचीन रूप से चिन्तन किया गया) और सु-तपस्यित (सु-आचरित)।
जब धर्म सु-अधीत होता है, तब वह सु-ध्यात होता है। जब वह सु-ध्यात होता है, तब वह सु-तपस्थित होता है।
सु-अधीत, सु-ध्यात और सु-तपस्थित धर्म को भगवान् ने स्वाख्यात धर्म कहा है (५०७)। ज्ञ-अज्ञ-सूत्र
५०८—तिविधा वावत्ती पपणत्ता, तं जहा—जाणू, अजाणू, वितिगिच्छा।
व्यावृत्ति (पापरूप कार्यों से निवृत्ति) तीन प्रकार की कही गई है—ज्ञान-पूर्वक, अज्ञान-पूर्वक और विचिकित्सा (संशयादि)-पूर्वक (५०८)।
५०९- [तिविधा अज्झोववजणा पण्णत्ता, तं जहा—जाणू, अजाणू, वितिगिच्छा।
[अध्युपपादन (इन्द्रिय-विषयानुसंग) तीन प्रकार का कहा गया है—ज्ञान-पूर्वक, अज्ञान-पूर्वक और विचिकित्सा-पूर्वक (५०९)।
५१०-तिविधा परियावजणा पण्णत्ता, तं जहा जाणू, अजाणू, वितिगिच्छा।]
पर्यापादन (विषय-सेवन) तीन प्रकार का कहा गया है—ज्ञान-पूर्वक, अज्ञान-पूर्वक और विचिकित्सापूर्वक (५१०)।] अन्त-सूत्र
५११-- तिविधे अंते पण्णत्ते, तं जहा लोगंते, वेयंते, समयंते। अंत (रहस्य-निर्णय) तीन प्रकार का कहा गया है१. लोकान्त-निर्णय- लौकिक शास्त्रों के रहस्य का निर्णय। २. वेदान्त-निर्णय- वैदिक शास्त्रों के रहस्य का निर्णय।
३. समयान्त-निर्णय- जैनसिद्धान्तों के रहस्य का निर्णय (५११)। जिन-सूत्र
५१२- तओ जिणा पण्णत्ता, तं जहा-ओहिणाणजिणे, मणपजवणाणजिणे, केवलणाणजिणे। ५१३-तओ केवली पण्णत्ता, तं जहा ओहिणाणकेवली, मणपजवणाणकेवली, केवलणाणकेवली। ५१४– तओ अरहा पण्णत्ता, तं जहा ओहिणाणअरहा, मणपज्जवणाणअरहा, केवलणाणअरहा।
जिन तीन प्रकार के कहे गये हैं—अवधिज्ञानी जिन, मनःपर्यवज्ञानी जिन और केवलज्ञानी जिन (५१२)। केवली तीन प्रकार के कहे गये हैं—अवधिज्ञान केवली, मनःपर्यवज्ञान केवली और केवलज्ञ न केवली (५१३)।