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स्थानाङ्गसूत्रम् मैंने जो दोष किये हैं वे मिथ्या हों, इस प्रकार 'मिच्छा मि दुक्कडं' करने को प्रतिक्रमण कहते हैं। आलोचना और प्रतिक्रमण इन दोनों के करने को तदुभय कहते हैं। जो भिक्षादि-जनित साधारण दोष होते हैं, उनकी शुद्धि केवल आलोचना से हो जाती है। जो सहसा अनाभोग से दुष्कृत हो जाते हैं, उनकी शुद्धि प्रतिक्रमण से होती है और जो राग-द्वेषादि-जनित दोष होते हैं, उनकी शुद्धि आलोचना और प्रतिक्रमण दोनों के करने से होती है। अकर्मभूमि-सूत्र
४४९- जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं तओ अकम्मभूमीओ पण्णत्ताओ, तं जहाहेमवते, हरिवासे, देवकुरा। ___जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के दक्षिण भाग में तीन अकर्मभूमियाँ कही गई हैं हैमवत, हरिवर्ष और देवकुरु (४४९)।
४५०- जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं तओ अकम्मभूमीओ पण्णत्ताओ, तं जहा— उत्तरकुरा, रम्मगवासे, हेरण्णवए।
जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के उत्तर भाग में तीन अकर्मभूमियां कहीं गई हैं—उत्तरकुरु, रम्यकवर्ष और हैरण्यवत (४५०)। वर्ष-(क्षेत्र)-सूत्र
४५१- जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं तओ वासा पण्णत्ता, तं जहा—भरहे, हेमवए, हरिवासे।
जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के दक्षिण भाग में तीन वर्ष (क्षेत्र) कहे गये हैं भरत, हैमवत और हरिवर्ष (४५१)।
४५२- जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं तओ वासा पण्णत्ता, तं जहा–रम्मगवासे, हेरण्णवते, एरवए। ___जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के उत्तर भाग में तीन वर्ष कहे गये हैं रम्यकवर्ष, हैरण्यवतवर्ष और ऐरवतवर्ष (४५२)। वर्षधर-पर्वत-सूत्र
. ४५३ - जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं तओ वासहरपव्वता पण्णत्ता, तं जहाचुल्लहिमवंते, महाहिमवंते, णिसढे।
जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के दक्षिण भाग में तीन वर्षधर पर्वत कहे गये हैं क्षुल्ल हिमवान्, महाहिमवान् और निषधपर्वत (४५३)।
४५४- जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं तओ वासहरपव्वत्ता पण्णत्ता, तं जहाणीलवंते, रुप्पी, सिहरी।
जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के उत्तर भाग में तीन वर्षधर पर्वत कहे गये हैं नीलवान्, रुक्मी और शिखरी पर्वत (४५४)।