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स्थानाङ्गसूत्रम्
१. देश-अज्ञान- ज्ञातव्य वस्तु के किसी एक अंश को न जानना। २. सर्व-अज्ञान- ज्ञातव्य वस्तु को सर्वथा न जानना।
३. भाव-अज्ञान— वस्तु के अमुक ज्ञातव्य पर्यायों को नहीं जानना (४०९)। धर्म-सूत्र
४१०- तिविहे धम्मे पण्णत्ते, तं जहा सुयधम्मे, चरित्तधम्मे, अत्थिकायधम्मे। धर्म तीन प्रकार का कहा गया है१. श्रुत-धर्म- वीतराग-भावना के साथ शास्त्रों का स्वाध्याय करना। २. चारित्र-धर्म- मुनि और श्रावक के धर्म का परिपालन करना।
३. अस्तिकाय-धर्म- प्रदेश वाले द्रव्यों को अस्तिकाय कहते हैं और उनके स्वभाव को अस्तिकाय-धर्म कहा जाता है (४१०)। उपक्रम-सूत्र
४११-तिविधे उवक्कमे पण्णत्ते, तं जहा धम्मिए उवक्कमे, अधम्मिए उवक्कमे, धम्मियाधम्मिए उवक्कमे।
अहवा–तिविधे उवक्कमे पण्णत्ते, तं जहा—आओवक्कमे, परोवक्कमे, तदुभयोवक्कमे। उपक्रम (उपाय-पूर्वक कार्य का आरम्भ) तीन प्रकार का कहा गया है१. धार्मिक-उपक्रम- श्रुत और चारित्र रूप धर्म की प्राप्ति के लिए प्रयास करना। २. अधार्मिक-उपक्रम- असंयम-वर्धक आरम्भ-कार्य करना। ३. धार्मिकाधार्मिक-उपक्रम- संयम और असंयमरूप कार्यों का करना। अथवा उपक्रम तीन प्रकार का कहा गया है१. आत्मोपक्रम- अपने लिए कार्य-विशेष का उपक्रम करना। २. परोपक्रम- दूसरों के लिए कार्य-विशेष का उपक्रम करना।
३. तदुभयोपक्रम- अपने और दूसरों के लिए कार्य-विशेष करना (४११)। वैयावृत्यादि-सूत्र __४१२-[तिविधे वेयावच्चे पण्णत्ते, तं जहा—आयवेयावच्चे, परवेयावच्चे, तदुभयवेयावच्चे। ४१३– तिविधे अणुग्गहे पण्णत्ते, तं जहा—आयअणुग्गहे, परअणुग्गहे, तदुभयअणुग्गहे। ४१४तिविधा अणुसट्ठी पण्णत्ता, तं जहा—आयअणुसट्ठी, परअणुसट्ठी, तदुभयअणुसट्ठी। ४१५–तिविधे उवालंभे पण्णत्ते, तं जहा—आओवालंभे, परोवालंभे, तदुभयोवालंभे]। ___ वैयावृत्त्य (सेवा-टहल) तीन प्रकार का है—आत्मवैयावृत्त्य, पर-वैयावृत्त्य और तदुभयवैयावृत्त्य (४१२) । अनुग्रह (उपकार) तीन प्रकार का कहा गया है—आत्मानुग्रह, परानुग्रह और तदुभयानुग्रह (४१३)। अनुशिष्टि