Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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स्थानाङ्गसूत्रम् पण्णत्ते, तं जहा—मणुस्साणं चेव, पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं चेव। २६४- दोण्हं भवाउए पण्णत्ते, तं जहा–देवाणं चेव, णेरइयाणं चेव।
आयुष्य दो प्रकार का कहा गया है—अद्धायुष्य (एक भव के व्यतीत होने पर भी भवान्तरानुगामी कालविशेष रूप आयुष्य) और भवायुष्य (एक भव वाला आयुष्य) (२६२)। दो का अद्धायुष्य कहा गया है—मनुष्यों का और पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकों का (२६३)। दो का भवायुष्य कहा गया है—देवों का और नारकों का (२६४)। कर्म-पद
२६५ - दुविहे कम्मे पण्णत्ते, तं जहा—पदेसकम्मे चेव, अणुभावकम्मे चेव। २६६– दो अहाउयं पालेंति, तं जहा—देवच्चेव, णेरड्यच्चेव। २६७- दोण्हं आउय-संवट्टए पण्णत्ते, तं जहा— मणुस्साणं चेव, पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं चेव।
कर्म दो प्रकार का कहा गया है—प्रदेशकर्म (जो कर्म मात्र कर्मपुद्गलों से वेदा जाय—रस अनुभाग से नहीं) और अनुभाव कर्म (जिसके अनुभाग-रस का वेदन किया जाय) (२६५)। दो यथायु (पूर्णायु) का पालन करते हैं—देव और नारक (२६६)। दो का आयुष्य संवर्तक (अपवर्तन वाला) कहा गया है—मनुष्यों का और पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकों का (२६७)। तात्पर्य यह है कि मनुष्य और तिर्यंच दीर्घकालीन आयुष्य को अल्पकाल में भी भोग लेते हैं, क्योंकि वह सोपक्रम होता है। यह सूत्र भी पूर्ववत् अयोगव्यवच्छेदक ही है। क्षेत्र-पद
२६८- जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणे णं दो वासा पण्णत्ता-बहुसमतुल्ला अविसेस-मणाणत्ता अण्णमण्णं णातिवटुंति आयाम-विक्खंभ-संठाण-परिणाहेणं, तं जहा— भरहे चेव, एरवए चेव। २६९— एवमेएणमभिलावेणं हेमवते चेव, हेरण्णवए चेव। हरिवासे चेव, रम्मयवासे चेव।
जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर (सुमेरु) पर्वत के उत्तर और दक्षिण में दो क्षेत्र कहे गये हैं—भरत (दक्षिण) और ऐरवत (उत्तर में)। ये दोनों क्षेत्र-प्रमाण में सर्वथा सदृश हैं, नगर-नदी आदि की दृष्टि से उनमें कोई विशेषता नहीं है, कालचक्र के परिवर्तन की दृष्टि से उनमें कोई विभिन्नता नहीं है, वे आयाम (लम्बाई), विष्कम्भ (चौड़ाई), संस्थान (आकार) और परिणाह (परिधि) की अपेक्षा एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं समान हैं। इसी प्रकार इसी अभिलाप (कथन) से हैमवत और हैरण्यवत, तथा हरिवर्ष और रम्यकवर्ष भी परस्पर सर्वथा समान कहे गये हैं (२६९)।
२७०- जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिम-पच्चत्थिमे णं दो खेत्ता पण्णत्ताबहुसमतुल्ला अविसेसमणाणत्ता अण्णमण्णं णातिवटुंति आयाम-विक्खंभ-संठाण-परिणाहेणं, तं जहापुव्वविदेहे चेव, अवरविदेहे चेव। ____ जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के पूर्व और पश्चिम में दो क्षेत्र कहे गये हैं—पूर्व विदेह और अपर विदेह। ये दोनों क्षेत्र प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं, नगर-नदी आदि की दृष्टि से उनमें कोई भिन्नता नहीं है,