Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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स्थानाङ्गसूत्रम्
महानदियाँ प्रवाहित होती हैं (२९३)। प्रपातद्रह-पद
२९४– जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं भरहे वासे दो पवायदहा पण्णत्ताबहुसमतुल्ला, तं जहा—ांगप्पवायद्दहे चेव, सिंधुप्पवायहहे चेव।
___ जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के दक्षिण में भरत क्षेत्र में दो प्रपातद्रह कहे गये हैं—गंगाप्रपातद्रह और सिन्धुप्रपातद्रह। वे दोनों क्षेत्र-प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं यावत् आयाम, विष्कम्भ, उद्वेध, संस्थान और परिधि की अपेक्षा वे एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं (२९४)।
२९५ – एवं हेमवए वासे दो पवायदहा पण्णत्ता—बहुसमतुल्ला, तं जहा–रोहियप्पवायदहे चेव, रोहियंसप्पवायदहे चेव।
इसी प्रकार हैमवत क्षेत्र में दो प्रपातद्रह कहे गये हैं रोहितप्रपातद्रह और रोहितांशप्रपातद्रह । वे दोनों क्षेत्रप्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं यावत् आयाम, विष्कम्भ, उद्वेध, संस्थान और परिधि की अपेक्षा ये एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं (२९५)।
२९६- जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं हरिवासे वासे दो पवायदहा पण्णत्ताबहुसमतुल्ला, तं जहा हरिपवायद्दहे चेव, हरिकंतप्पवायद्दहे चेव। ____ जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के दक्षिण में हरिवर्ष क्षेत्र में दो प्रपातद्रह कहे गये हैं—हरितप्रपातद्रह और हरिकान्तप्रपातद्रह। वे दोनों क्षेत्र-प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं यावत् आयाम, विष्कम्भ, उद्वेध, संस्थान और परिधि की अपेक्षा वे एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं (२९६)।
२९७– जंबुहीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणे णं महाविदेहे वासे दो पवायदहा पण्णत्ता—बहुसमतुल्ला जाव तं जहा सीतप्पवायहहे चेव, सीतोदप्पवायहहे चेव।
___ जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के उत्तर-दक्षिण में महाविदेहक्षेत्र में दो महाप्रपातद्रह कहे गये हैंसीताप्रपातद्रह और सीतोदाप्रपातद्रह। ये दोनों क्षेत्र-प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं यावत् आयाम, विष्कम्भ, उद्वेध, संस्थान और परिधि की अपेक्षा वे एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं (२९७)।
२९८- जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं रम्मए वासे दो पवायदहा पण्णत्ताबहुसमतुल्ला जाव तं जहा—णरकंतप्पवायहहे चेव, णारिकंतप्पवायदहे चेव।
__ जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के उत्तर में रम्यकक्षेत्र में दो प्रपातद्रह कहे गये हैं—नरकान्ताप्रपातद्रह और नारीकान्ताप्रपातद्रह । वे दोनों क्षेत्र-प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं यावत् आयाम, विष्कम्भ, उद्वेध, संस्थान और परिधि की अपेक्षा वे एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं (२९८)।
२९९– एवं हेरण्णवते वासे दो पवायदहा पण्णत्ता-बहुसमतुल्ला जाव तं जहासुवण्णकूलप्पवायहे चेव, रुप्पकूलप्पवाय(हे चेव।