Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
१५८
स्थानाङ्गसूत्रम्
___३७५-तओ सुगता पण्णत्ता, तंजहा–सिद्धसोगता, देवसुग्गता, मणुस्ससुग्गता।
सुगत (सुगति को प्राप्त जीव) तीन प्रकार के कहे गये हैं—सिद्ध-सुगत, देव-सुगत और मनुष्य-सुगत (३७५)। तपःपानक-सूत्र
३७६- चउत्थभत्तियस्स णं भिक्खुस्स कप्पंति तओ पाणगाइं पडिगाहित्तए, तं जहा—उस्सेइमे, संसेइमे, चाउलधोवणे।
चतुर्थभक्त (एक उपवास) करने वाले भिक्षु को तीन प्रकार के पानक ग्रहण करना कल्पता है१. उत्स्वेदिम– आटे का धोवन। २. संसेकिम— सिझाये हुए कैर आदि का धोवन। ३. तन्दुल-धोवन— चावलों का धोवन (३७६)।
३७७- छट्ठभत्तियस्स णं भिक्खुस्स कप्पंति तओ पाणगाइं पडिगाहित्तए, तं जहा–तिलोदए, तुसोदए, जवोदए।
षष्ठभक्त (दो उपवास) करने वाले भिक्षु को तीन प्रकार के पानक ग्रहण करना कल्पता है१. तिलोदक-तिलों को धोने का जल। २. तुषोदक- तुष-भूसे के धोने का जल। ३. यवोदक— जौ के धोने का जल (३७७)।
३७८- अट्ठमभत्तियस्स णं भिक्खुस्स कप्पंति तओ पाणगाइं पडिगाहित्तए, तं जहा—आयामए, सोवीरए, सुद्धवियडे।
अष्टमभक्त (तीन उपवास) करने वाले भिक्षु को तीन प्रकार के पानक लेना कल्पता है— १. आयामक (आचामक)– अवस्रावण अर्थात् उबाले हुए चावलों का मांड। २. सौवीरक-कांजी, छाछ के ऊपर का पानी।
३. शुद्ध विकट-शुद्ध उष्ण जल (३७८)। पिण्डैषणा-सूत्र
३७९- तिविहे उवहडे पण्णत्ते, तं जहा—फलिओवहडे, सुद्धोवहडे, संसट्ठोवहडे। उपहृत (भिक्षु को दिये जाने वाला) भोजन तीन प्रकार का कहा गया है१. फलिकोपहत- खाने के लिए थाली आदि में परोसा गया भोजन। २. शुद्धोपहत- खाने के लिए साथ में लाया हुआ लेप-रहित भोजन। ३. संसृष्टोपहत- खाने के लिए हाथ में उठाया हुआ अनुच्छिष्ट भोजन (३७९)। ३८०- तिविहे ओग्गहिते पण्णत्ते, तं जहा—जं च ओगिण्हति, जं च साहरति, जं च