________________
तृतीय स्थान– तृतीय उद्देश
१५९ आसगंसि पक्खिवति।
अवगृहीत भोजन तीन प्रकार का कहा गया है१. परोसने के लिए ग्रहण किया हुआ भोजन। २. परोसा हुआ भोजन।
३. परोसने से बचा हुआ और पुनः पाक-पात्र में डाला हुआ भोजन (३८०)। अवमोदरिका-सूत्र
३८१– तिविधा ओमोयरिया पण्णत्ता, तं जहा—उवगरणोमोयरिया भत्तपाणोमोदरिया, भावोमोदरिया।
अवमोदरिका (भक्त-पात्रादि को कम करने की वृत्ति—ऊनोदरी) तीन प्रकार की कही गई है१. उपकरण-अवमोदरिका- उपकरणों को घटाना। २. भक्त-पान-अवमोदरिका– खान-पान की वस्तुओं को घटाना। ३. भाव-अवमोदरिका- राग-द्वेषादि दुर्भावों को घटाना (३८१)।
३८२- उवगरणोमोदरिया तिविहा पण्णत्ता, तं जहा—एगे वत्थे, एगे पाते, चियत्तोवहिसाइज्जणया।
उपकरण-अवमोदरिका तीन प्रकार की कही गई है— १. एक वस्त्र रखना। २. एक पात्र रखना।
३. संयमोपकारी समझकर आगम-सम्मत उपकरण रखना (३८२)। निर्ग्रन्थ-चर्या-सूत्र
३८३-तओ ठाणा णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा अहियाए असुभाए अखमाए अणिस्सेसाए अणाणगामियत्ताए भवंति, तं जहा—कूअणता, कक्करणता, अवज्झाणता।
तीन स्थान निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियों के लिए अहितकर, अशुभ, अक्षम (अयुक्त) अनिःश्रेयस (अकल्याणकर) अनानुगामिक, अमुक्तिकारी और अशुभानुबन्धी होते हैं
१. कूजनता- आस्विर में करुण क्रन्दन करना। २. कर्करणता- शय्या, उपधि आदि के दोष प्रकट करने के लिए प्रलाप करना। ३. अपध्यानता— आर्त और रौद्रध्यान करना (३८३)। - ३८४- तओ ठाणा णिग्गंथाण वा निग्गंथीण वा हिताए सुहाए खमाए णिस्सेसाए आणुगामिअत्ताए भवंति, तं जहा अकूअणता अकक्करणता, अणवज्झाणता।
__ तीन स्थान निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियों के लिए हितकर, शुभ, क्षम, निःश्रेयस एवं आनुगामिता (मुक्ति प्राप्ति) के लिए होते हैं