Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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स्थानाङ्गसूत्रम्
१. अकूजनता- आस्विर से करुण क्रन्दन नहीं करना। २. अकर्करणता- शय्या आदि के दोषों को प्रकट करने के लिए प्रलाप नहीं करना।
३. अनपध्यानता- आर्त-रौद्ररूप दुर्ध्यान नहीं करना (३८४)। शल्य-सूत्र
३८५- तओ सल्ला पण्णत्ता, तं जहा—मायासल्ले, णियाणसल्ले, मिच्छादसणसल्ले।
शल्य तीन हैं—मायाशल्य, निदानशल्य और मिथ्यादर्शनशल्य (३८५)। तेजोलेश्या-सूत्र
३८६– तिहिं ठाणेहिं समणे णिग्गंथे संखित्त-विउलतेउलेस्से भवति, तं जहा—आयावणयाए, खंतिखमाए, अपाणगेणं तवोकम्मेणं।
तीन स्थानों से श्रमण निर्ग्रन्थ संक्षिप्त की हुई तेजोलेश्यावाले होते हैं..१. आतापना लेने से— सूर्य की प्रचण्ड किरणों द्वारा उष्णता सहन करने से। २. क्षान्ति-क्षमा धारण करने से— बदला लेने के लिए समर्थ होते हुए भी क्रोध पर विजय पाने से।
३. अपानक तपः कर्म से— निर्जल—जल विना पीये तपश्चरण करने से (३८६)। . भिक्षु-प्रतिमा-सूत्र
३८७-तिमासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवण्णस्स अणगारस्स कप्पंति तओ दत्तीओ भोअणस्स पडिगाहेत्तए, तओ पाणगस्स।
त्रैमासिक भिक्षुप्रतिमा को स्वीकार करने वाले अनगार के लिए तीन दत्तियां भोजन की और तीन दत्तियां पानक की ग्रहण करना कल्पता है (३८७)।
___३८८- एगरातियं भिक्खुपडिमं सम्म अणणुपालेमाणस्स अणगारस्स इमे तओ ठाणा अहिताए असुभाए अखमाए अणिस्सेयसाय अणाणुगामियत्ताए भवंति, तं जहा—उम्मायं वा लभिज्जा, दीहकालियं वा रोगातंकं पाउणेजा, केवलीपण्णत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा।
एक रात्रि की भिक्षु-प्रतिमा का सम्यक् प्रकार से अनुपालन नहीं करने वाले अनगार के लिए तीन स्थान अहितकर, अशुभ, अक्षम, अनिःश्रेयसकारी और अनानुगामिता के कारण होते हैं
१. उक्त अनगार उन्माद को प्राप्त हो जाता है। २. या दीर्घकालिक रोगातंक से ग्रसित हो जाता है। ३. अथवा केवलप्रज्ञप्त धर्म से भ्रष्ट हो जाता है (३८८)।
३८९- एगरातियं भिक्खुपडिमं सम्मं अणुपालेमाणस्स अणगारस्स तओ ठाणा हिताए सुभाए खमाए णिस्सेसाए आणुगामियत्ताए भवंति, तं जहा—ओहिणाणे वा से समुप्पजेजा, मणपज्जवणाणे वा से समुप्पजेजा, केवलणाणे वा से समुप्पजेजा।