Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
१५७
तृतीय स्थान- तृतीय उद्देश विदिशाओं में प्राकार (परकोटा) से घिरे होते हैं तथा वे एक द्वार वाले कहे गये हैं।
२. जो विमान त्रिकोण होते हैं वे सिंघाडे के आकार के होते हैं, दो ओर से प्राकार से घिरे हुए तथा एक ओर से वेदिका से घिरे होते हैं तथा उनके तीन द्वार कहे गये हैं।
३. जो विमान चतुष्कोण होते हैं वे अखाड़े के आकार के होते हैं, सर्व दिशाओं और विदिशाओं में वेदिकाओं से घिरे होते हैं तथा उनके चार द्वार कहे गये हैं (३६७)।
३६८– तिपतिट्ठिया विमाणा पण्णत्ता, तं जहा—घणोदधिपतिट्ठिता, घणवातपइट्ठिता, ओवासंतरपइट्ठिता।
विमान त्रिप्रतिष्ठित (तीन आधारों से अवस्थित) कहे गये हैं घनोदधि-प्रतिष्ठित, घनवात-प्रतिष्ठित और अवकाशान्तर-(आकाश-) प्रतिष्ठित (३६८)।
३६९–तिविधा विमाणा पण्णत्ता, तं जहा—अवट्ठिता, वेउव्विता, पारिजाणिया । विमान तीन प्रकार के कहे गये हैं१. अवस्थिति- स्थायी निवास वाले। २. वैक्रिय– भोगादि के लिए बनाये गए।
३. पारियानिक– मध्यलोक में आने के लिए बनाए गए (३६९)। दृष्टि-सूत्र
३७०– तिविधा जेरइया पण्णत्ता, तं जहा सम्मादिट्ठी, मिच्छादिट्ठिी, सम्मामिच्छादिट्ठी। ३७१– एवं विगलिंदियवजं जाव वेमाणियाणं ।
नारकी जीव तीन प्रकार के कहे गये हैं सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि और सम्यग्मिथ्या (मिश्र) दृष्टि (३७०)। इसी प्रकार विकलेन्द्रियों को छोड़कर सभी दण्डकों में तीनों प्रकार की दृष्टिवाले जीव जानना चाहिए (३७१)। दुर्गति-सुगति-सूत्र
३७२- तओ दुग्गतीओ पण्णत्ताओ, तं जहा—णेरइयदुग्गती, तिरिक्खजोणियदुग्गती, मणुयदुग्गती।
तीन दुर्गतियां कही गई हैं नरकदुर्गति, तिर्यग्योनिकदुर्गति और मनुजदुर्गति (दीन-हीन दुःखी मनुष्यों की अपेक्षा से) (३७२)।
३७३- तओ सुगतीओ पण्णत्ताओ, तं जहा—सिद्धसोगती, देवसोगती, मणुस्ससोगती । तीन सुगतियां कही गई हैं—सिद्धसुगति, देवसुगति और मनुष्यसुगति (३७३)। ३७४ - तओ दुग्गता पण्णत्ता, तं जहा–णेरड्यदुग्गता, तिरिक्खजोणियदुग्गता, मणुस्सदुग्गता।
दुर्गत (दुर्गति को प्राप्त जीव) तीन प्रकार के कहे गये हैं—नारकदुर्गत, तिर्यग्योनिकदुर्गत और मनुष्यदुर्गत (३७४)।