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तृतीय स्थान
- तृतीय उद्देश
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की— जो मुझे उपलब्ध हुई है, प्राप्ति हुई है, अभिसमन्वागति हुई है, उसे देखें ।
इन तीन कारणों से देवलोक में तत्काल उत्पन्न देव शीघ्र ही मनुष्यलोक में आना चाहता है और आने में समर्थ भी होता है (३६२)।
विवेचन— आगम के अर्थ की वाचना देने वाले एवं दीक्षागुरु को तथा संघ के स्वामी को आचार्य कहते हैं । आगमसूत्रों की वाचना देने वाले को उपाध्याय कहते हैं। वैयावृत्त्य, तपस्या आदि में साधुओं की नियुक्ति करने वाले को प्रवर्तक कहते हैं। संयम में स्थिर करने वाले एवं वृद्ध साधुओं को स्थविर कहते हैं। गण के नायक को गणी कहते हैं। तीर्थंकर के प्रमुख शिष्य गणधर कहलाते हैं । साध्वियों के विहार आदि की व्यवस्था करने वाले को भी गणधर कहते हैं। जो आचार्य की अनुज्ञा लेकर गण के उपकार के लिए वस्त्र - पात्रादि के निमित्त कुछ साधुओं को साथ लेकर गण से अन्यत्र विहार करता है, उसे गणावच्छेदक कहते हैं ।
देव - मनःस्थिति - सूत्र
३६३ – तओ ठाणाइं देवे पीहेज्जा, तं जहा माणुस्सगं भवं, आरिए खेत्ते जम्मं, सुकुलपच्चायातिं ।
देव तीन स्थानों की इच्छा रखते हैं—मानुष भव की, आर्य क्षेत्र में जन्म लेने की और सुकुल में प्रत्याजाति (उत्पन्न होने) की (३६३)।
३६४—– तिहिं ठाणेहिं देवे
तप्पेज्जा, तं जहा—
१. अहो! णं मए संते बले संते वीरिए संते पुरिसक्कार- परक्कमे खेमंसि सुभिक्खंसि आयरियउवज्झाएहिं विज्जमाणेहिं कल्लसरीरेणं णो बहुए सुते अहीते ।
२. अहो! णं मए इहलोगपडिबद्धेणं परलोगपरंमुहेणं विसयतिसितेणं णो दीहे सामण्णपरियाए अणुपालिते।
३. अहो! णं मए इड्डि-रस- साय - गरुएणं भोगासंसगिद्धेणं णो विसुद्धे चरित्ते फासिते । इच्चेतेहिं तिहिं ठाणेहिं देवे परितप्पेज्जा ।
तीन कारणों से देव परितप्त होता है—
१. अहो ! मैंने बल, वीर्य, पुरुषकार, पराक्रम, क्षेम, सुभिक्ष, आचार्य और उपाध्याय की उपस्थिति तथा नीरोग शरीर के होते हुए भी श्रुत का अधिक अध्ययन नहीं किया ।
२. अहो! मैंने इस लोक-सम्बन्धी विषयों में प्रतिबद्ध होकर तथा परलोक से पराङ्मुख होकर, दीर्घकाल तक श्रामण्य-पर्याय का पालन नहीं किया ।
३. अहो! मैंने ऋद्धि, रस एवं साता गौरव से युक्त होकर, अप्राप्त भोगों की आकांक्षा कर और भोगों में गृद्ध होकर विशुद्ध (निरतिचार - उत्कृष्ट ) चारित्र का स्पर्श (पालन) नहीं किया ।
इन तीन कारणों से देव परितप्त होता है ( ३६४) ।
३६५ तिहिं ठाणेहिं देवे चस्सामित्ति जाणइ, तं जहा — विमाणाभरणाइं णिप्पभाई पासित्ता, कप्परुक्खगं मिलायमाणं पासित्ता, अप्पणो तेयलेस्स परिहायमाणिं जाणित्ता — इच्चेएहिं तिहिं ठाणेहिं