Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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तृतीय स्थान प्रथम उद्देश
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पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—तिर्यग्योनिक पुरुष, मनुष्य पुरुष और देवपुरुष (५१)। तिर्यग्योनिक पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—जलचर, स्थलचर और खेचर (५२)। मनुष्यपुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कर्मभूमिज, अकर्मभूमिज और अन्तर्वीपज (५३)। नपुंसक-सूत्र
५४ – तिविहा णपुंसगा पण्णत्ता, तं जहा—णेरइयणपुंसगा, तिरिक्खजोणियणपुंसगा, मणुस्सणपुंसगा। ५५- तिरिक्खजोणियणपुंसगा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा -जलयरा, थलयरा, खहयरा। ५६– मणुस्सणपुंसगा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा—कम्मभूमिगा, अकम्मभूमिगा, अंतरदीवगा।
नपुंसक तीन प्रकार के कहे गये हैं—नारक-नपुंसक, तिर्यग्योनिक-नपुंसक और मनुष्य-नपुंसक (५४)। तिर्यग्योनिक नपुंसक तीन प्रकार के कहे गये हैं—जलचर, स्थलचर और खेचर (५५)। मनुष्यनपुंसक तीन प्रकार के कहे गये हैं—कर्मभूमिज, अकर्मभूमिज और अन्तर्वीपज (देवगति में नपुंसक नहीं होते) (५६)। तिर्यग्योनिक-सूत्र
५७– तिविहा तिरिक्खजोणिया पण्णत्ता, तं जहा—इत्थी, पुरिसा, णपुंसगा। .तिर्यग्योनिक जीव तीन प्रकार के कहे गये हैं—स्त्रीतिर्यंच, पुरुषतिर्यंच और नपुंसकतिर्यंच (५७)। लेश्या-सूत्र
५८–णेरइयाणं तओ लेसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा—कण्हलेसा, णीललेसा, काउलेसा। ५९- असुरकुमाराणं तओ लेसाओ संकिलिट्ठाओ पण्णत्ताओ, तं जहा—कण्हलेसा, णीललेसा, काउलेसा।६०— एवं जाव थणियकुमाराणं। ६१— एवं पुढविकाइयाणं आउ-वणस्सतिकाइयाणवि। ६२- तेउकाइयाणं वाउकाइयाणं बेंदियाणं दियाणं चउरिदिआणवि तओ लेस्सा, जहा णेरइयाणं। ६३- पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं तओ लेसाओ संकिलिट्ठाओ पण्णत्ताओ, तं जहा–कण्हलेसा, णीललेसा, काउलेसा। ६४ - पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं तओ लेसाओ असंकिलिट्ठाओ पण्णत्ताओ, तं जहा तेउलेसा, पम्हलेसा, सुक्कलेसा। ६५- एवं मणुस्साण वि [मणुस्साणं तओ लेसाओ संकिलिट्ठाओ, पण्णत्ताओ, तं जहा—कण्हलेसा, णीललेसा, काउलेसा। ६६- मणुस्साणं तओ लेसाओ असंकिलिट्ठाओ पण्णत्ताओ, तं जहा तेउलेसा, पम्हलेसा, सुक्कलेसा]। ६७- वाणमंतराणं जहा असुरकुमाराणं। ६८- वेमाणियाणं तओ लेस्साओ पण्णत्ताओ, तं जहा तेउलेसा, पम्हलेसा, सुक्कलेसा। ___नारकों में तीन लेश्याएं कही गई हैं—कृष्णलेश्या, नीललेश्या और कापोतलेश्या (५८)। असुरकुमारों में तीन अशुभ लेश्याएं कही गई हैं—कृष्णलेश्या, नीललेश्या और कापोतलेश्या (५९)। इसी प्रकार स्तनितकुमार तक के सभी भवनवासी देवों में तीनों अशुभ लेश्याएं कही गई हैं (६०)। पृथ्वीकायिक, अप्कायिक और वनस्पतिकायिक जीवों में भी तीनों अशुभ लेश्याएं होती हैं—कृष्णलेश्या, नीललेश्या और कापोतलेश्या (६१)। तेजस्कायिक, वायुकायिक, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों में भी नारकों के समान तीनों अशुभ लेश्याएं होती हैं (६२)।