Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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स्थानाङ्गसूत्रम्
आते हैं। तृणवनस्पति-सूत्र
१०४-तिविहा तणवणस्सइकाइया पण्णत्ता, तं जहा--संखेजजीविका, असंखेजजीविका, अणंतजीविका।
तृणवनस्पतिकायिक जीव तीन प्रकार के कहे गये हैं—१. संख्यात जीव वाले (नाल से बंधे हुए पुष्प) २. असंख्यात जीव वाले (वृक्ष के मूल, कन्द, स्कन्ध, त्वक्-छाल, शाखा और प्रवाल) ३. अनन्त जीव वाले (पनक, फफूंदी, लीलन-फूलन आदि) (१०४)। तीर्थ-सूत्र
१०५— जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे तओ तित्था पण्णत्ता, तं जहा—मागहे, वरदामे, पभासे। १०६-- एवं एरवएवि। १०७– जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे एगमेगे चक्कवट्टिविजये तओ तित्था पण्णत्ता, तं जहा—मागहे, वरदामे, पभासे। १०८– एवं धायइसंडे दीवे पुरथिमद्धेवि पच्चत्थिमद्धेवि। पुक्खरवरदीवद्धे पुरथिमद्धेवि, पच्चत्थिमद्धेवि।
जम्बूद्वीप नामक द्वीप के भारतवर्ष में तीन तीर्थ कहे गये हैं—मागध, वरदाम और प्रभास (१०५)। इसी प्रकार ऐरवत क्षेत्र में भी तीन तीर्थ कहे गये हैं (१०६)। जम्बूद्वीप नामक द्वीप के महाविदेह क्षेत्र में एक-एक चक्रवर्ती के विजयखण्ड में तीन-तीन तीर्थ कहे गये हैं मागध, वरदाम और प्रभास (१०७)। इसी प्रकार धातकीखण्ड तथा पुष्करार्ध द्वीप के पूर्वार्ध और पश्चिमार्ध में भी तीन-तीन तीर्थ जानना चाहिए (१०८)। . कालचक्र-सूत्र
१०९- जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु तीताए उस्सप्पिणीए सुसमाए समाए तिण्णि सागरोवमकोडाकोडीओ काले होत्था। ११०– एवं ओसप्पिणीए नवरं पण्णत्ते [जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु इमीसे ओसप्पिणीए सुसमाए समाए तिण्णि सागरोवमकोडाकोडीओ काले पण्णत्ते। १११- जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु आगमिस्साए उस्सप्पिणीए सुसमाए समाए तिण्णि सागरोवमकोडाकोडीओ काले भविस्सति]। ११२ – एवं धायइसंडे पुरथिमद्धे पच्चत्थिमद्धे वि। एवं पुक्खरवरदीवद्धे पुरथिमद्धे पच्चत्थिमद्धे वि कालो भाणियव्यो।
जम्बूद्वीप नामक द्वीप के भरत और ऐरवत क्षेत्र में अतीत उत्सर्पिणी के सुषमा नामक आरे का काल तीन कोडाकोडी सागरोपम था (१०९)। जम्बूद्वीप नामक द्वीप के भरत और ऐरवत क्षेत्र में वर्तमान अवसर्पिणी के सुषमा नामक आरे का काल तीन कोडाकोडी सागरोपम कहा गया है (११०)। जम्बूद्वीप नामक द्वीप के भरत और ऐरवत क्षेत्र में आगामी उत्सर्पिणी काल के सुषमा नामक आरे का काल तीन कोडाकोडी सागरोपम होगा (१११)। इसी प्रकार धातकीखण्ड के पूर्वार्ध और पश्चिमार्ध में भी और इसी प्रकार पुष्करवरद्वीपार्ध के पूर्वार्ध और पश्चिमार्ध में भी काल कहना चाहिए (११२)।