Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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स्थानाङ्गसूत्रम्
होता और यथायोग्य प्रायश्चित्त एवं तपःकर्म) अंगीकार नहीं करता
१. मेरी कीर्ति (एक दिशा में प्रसिद्धि) कम होगी। २. मेरा यश (सब दिशाओं में व्याप्त प्रसिद्धि) कम होगा। ३. मेरा पूजा-सत्कार कम होगा।
३४१- तिहिं ठाणेहिं मायी मायं कटु आलोएजा, पडिक्कमेज्जा, [णिंदेज्जा, गरिहेजा, विउद्देज्जा, विसोहेजा, अकरणयाए अब्भुटेजा, अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं] पडिवजेजा, तं जहा—माइस्स णं अस्सि लोगे गरहिए भवति, उववाए गरहिए भवति, आयाती गरहिया भवति।
तीन कारणों से मायावी माया करके उसकी आलोचना करता है, प्रतिक्रमण करता है, (निन्दा करता है, गर्दा करता है, व्यावर्तन करता है, उसकी शुद्धि करता है, उसे पुनः नहीं करने के लिए अभ्युद्यत होता है और यथायोग्य प्रायश्चित्त एवं तपःकर्म) अंगीकार करता है
१. मायावी का यह लोक (वर्तमान भव) गर्हित हो जाता है। २. मायावी का यह उपपात (अग्रिम भव) गर्हित हो जाता है। ३. मायावी की आजाति (अग्रिम भव से आगे का भव) गर्हित हो जाता है।
३४२– तिहिं ठाणेहिं मायी मायं कटु आलोएजा, [पडिक्कमेज्जा, शिंदेजा, गरिहेज्जा, विउट्टेजा, विसोहेजा, अकरणयाए अब्भुटेजा, अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं] पडिवजेजा, तं जहा—अमाइस्स णं अस्सि लोगे पसत्थे भवति, उववाते पसत्थे भवति, आयाती पसत्था भवति।
___ तीन कारणों से मायावी माया करके उसकी आलोचना करता है, (प्रतिक्रमण करता है, निन्दा करता है, गर्दा करता है, व्यावर्तन करता है, उसकी शुद्धि करता है, उसे पुनः नहीं करने के लिए अभ्युद्यत होता है और यथायोग्य प्रायश्चित्त एवं तपःकर्म) अंगीकार करता है
१. अमायावी (मायाचार नहीं करने वाले) का यह लोक प्रशस्त होता है। २. अमायावी का उपपात प्रशस्त होता है। ३. अमायावी की आजाति प्रशस्त होती है।
३४३– तिहिं ठाणेहिं मायी मायं कटु आलोएज्जा, [ पडिक्कमेजा, शिंदेजा, गरिहेजा, विउद्देजा, विसोहेजा, अकरणयाए अब्भुटेजा, अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं] पडिवजेजा, तं जहा—णाणट्ठयाए, दंसणट्ठयाए, चरित्तट्टयाए।
तीन कारणों से मायावी माया करके उसकी आलोचना करता है, (प्रतिक्रमण करता है, निन्दा करता है, गर्दा करता है, व्यावर्तन करता है, उसकी शुद्धि करता है, उसे पुनः नहीं करने के लिए अभ्युद्यत होता है और यथायोग्य प्रायश्चित्त एवं तपःकर्म) अंगीकार करता है—
१. ज्ञान की प्राप्ति के लिए। २. दर्शन की प्राप्ति के लिए। ३. चारित्र की प्राप्ति के लिए।