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द्वितीय स्थान तृतीय उद्देश
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पुष्करवर-पद
३४७- पुक्खरवरदीवड्वपुरथिमद्धे णं मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणे णं दो वासा पण्णत्ता बहुसमतुल्ला जाव तं जहा—भरहे चेव, एरवए चेव।
अर्धपुष्करवरद्वीप के पूर्वार्ध में मन्दर पर्वत के उत्तर-दक्षिण में दो क्षेत्र कहे गये हैं —दक्षिण में भरत और उत्तर में ऐरवत। वे दोनों क्षेत्र-प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं यावत् आयाम, विष्कम्भ, संस्थान और परिधि की अपेक्षा वे एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं (३४७)।
३४८— तहेव जाव दो कुराओ पण्णत्ताओ—देवकुरा चेव, उत्तरकुरा चेव।
तत्थ णं दो महतिमहालया महद्दुमा पण्णत्ता, तं जहा कूडसामली चेव, पउमरुक्खे चेव। देवा- गरुले चेव वेणुदेवे, पउमे चेव जाव छव्विहंपि कालं पच्चणुभवमाणा विहरंति।
तथैव यावत् (जम्बूद्वीप के प्रकरण में कहे गये सूत्र २६९-२७१ का सर्व वर्णन यहाँ वक्तव्य है) दो कुरु कहे गये हैं। वहाँ दो महातिमहान् महाद्रुम कहे गये हैं—कूटशाल्मली और पद्मवृक्ष। उनमें से कूटशाल्मली वृक्ष पर गरुडजाति का वेणुदेव, पद्मवृक्ष पर पद्मदेव रहता है। (यहाँ पर जम्बूद्वीप के समान सर्व वर्णन वक्तव्य है) यावत् भरत और ऐरवत इन दोनों क्षेत्रों में मनुष्य छहों ही कालों के अनुभाव को अनुभव करते हुए विचरते हैं (३४८)।
३४९- पुक्खरवरदीवड्डपच्चत्थिमद्धे णं मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणे णं दो वासा पण्णत्ता। तहेव णाणत्तं कूडसामली चेव, महापउमरुक्खे चेव। देवा-गरुले चेव वेणुदेवे, पुंडरीए चेव।
अर्धपुष्करवरद्वीप के पश्चिमार्ध में मन्दर पर्वत के उत्तर-दक्षिण में दो क्षेत्र कहे गये हैं—दक्षिण में भरत और उत्तर में ऐरवत । उनमें (आयाम, विष्कम्भ, संस्थान और परिधि की अपेक्षा कोई नानात्व नहीं है, विशेष इतना ही है कि यहां दो विशाल द्रुम हैं—कूटशाल्मली और महापद्म। इनमें से कूटशाल्मली वृक्ष पर गरुडजाति का वेणुदेव और महापद्मवृक्ष पर पुण्डरीकं देव रहता है (३४९)।
३५०-पुक्खरवरदीवड्डे णं दीवे दो भरहाइं, दो एरवयाई जाव दो मंदरा, दो मंदरचूलियाओ।
अर्धपुष्करवरद्वीप में दो भरत, दो ऐरवत से लेकर यावत् और दो मन्दर और दो मन्दरचूलिका तक सभी दोदो हैं (३५०)। वेदिका-पद
३५१- पुक्खरवरस्स णं दीवस्स वेइया दो गाउयाइं उड्डमुच्चत्तेणं पण्णत्ता। ३५२- सव्वेसिपि णं दीवसमुद्दाणं वेदियाओ दो गाउयाइं उड्डमुच्चत्तेणं पण्णत्ताओ।
पुष्करवरद्वीप की वेदिका दो कोश ऊंची कही गई है (३५१)। सभी द्वीपों और समुद्रों की वेदिकाएँ दो-दो कोश ऊंची कही गई हैं (३५२)।