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द्वितीय स्थान तृतीय उद्देश
७५ वैश्रमणकूट, दो अंजन, दो मातांजन, दो सौमनस, दो विद्युत्प्रभ, दो अंकावती, दो पद्मावती, दो आसीविष, दो सुखावह, दो चन्द्रपर्वत, दो सूर्यपर्वत, दो नागपर्वत, दो देवपर्वत, दो गन्धमादन, दो इषुकारपर्वत, दो चुल्लहिमवत्कूट, दो वैश्रमणकूट, दो महाहिमवत्कूट, दो वैडूर्यकूट, दो निषधकूट, दो रुचककूट, दो नीलवत्कूट, दो उपदर्शनकूट, दो रुक्मिकूट, दो माणिकांचनकूट, दो शिखरिकूट, दो तिगिंछकूट कहे गये हैं (३३६)।
३३७- दो पउमदहा, दो पउमद्दहवासिणीओ सिरीओ देवीओ, दो महापउमद्दहा, दो महापउमद्दहवासिणीओ हिरीओ, एवं जाव दो पुंडरीयद्दहा, दो पोंडरीयद्दहवासिणीओ लच्छीओ देवीओ।
धातकीखण्ड द्वीप में दो पद्मद्रह, दो पद्मद्रहवासिनी श्रीदेवी, दो महापद्मद्रह, दो महापद्मद्रहवासिनी ह्रीदेवी, इसी प्रकार यावत् (दो तिगिंछिद्रह, दो तिगिंछिद्रहवासिनी धृतिदेवी, दो केशरीद्रह, दो केशरीद्रहवासिनी कीर्तिदेवी, दो महापौण्डरीकद्रह, दो महापौण्डरीकद्रहवासिनी बुद्धिदेवी) दो पौण्डरीकद्रह, दो पौण्डरीकद्रहवासिनी लक्ष्मीदेवी कही गई हैं (३३७)।
३३८- दो गंगप्पवायदहा जाव दो रत्तावतीपवातहहा।
धातकीखण्डद्वीप में दो गंगाप्रपातद्रह, यावत् (दो सिन्धुप्रपातद्रह, दो रोहिताप्रपातद्रह, दो रोहितांशाप्रपातद्रह, दो हरितप्रपातद्रह, दो हरिकान्ताप्रपातद्रह, दो सीताप्रपातद्रह, दो सीतोदाप्रपातद्रह, दो नरकान्ताप्रपातद्रह, दो नारीकान्ताप्रपातद्रह, दो सुवर्णकूलाप्रपातद्रह, दो रुप्यकूलाप्रपातद्रह) दो रक्ताप्रपातद्रह, दो रक्तवतीप्रपातद्रह कहे गये हैं (३३८)।
३३९- दो रोहियाओ जाव दो रुप्पकूलाओ, दो गाहवतीओ, दो दहवतीओ, दो पंकवतीओ, दो तत्तजलाओ, दो मत्तजलाओ, दो उम्मत्तजलाओ, दो खीरोयाओ, दो सीहसोताओ, दो अंतोवाहिणीओ, दो उम्मिमालिणीओ, दो फेणमालिणीओ, दो गंभीरमालिणीओ।
धातकीखण्डद्वीप में दो रोहिता यावत् (दो हरिकान्ता, दो हरित्, दो सीतोदा, दो सीता, दो नारीकान्ता, दो नरकान्ता) दो रूप्यकूला, दो ग्राहवती, दो द्रहवती, दो पंकवती, दो तप्तजला, दो मत्तजला, दो उन्मत्तजला, दो क्षीरोदा, दो सिंहस्रोता, दो अन्तोमालिनी, दो उर्मिमालिनी, दो फेनमालिनी और दो गम्भीरमालिनी नदियाँ कही गई हैं (३३९)।
विवेचन– यद्यपि धातकीखण्डद्वीप के दो भरत क्षेत्रों में दो गंगा और सिन्धु नदियाँ भी हैं, तथा वहीं के दो ऐरवत क्षेत्रों में दो रक्ता और दो रक्तोदा नदियाँ भी हैं, किन्तु यहाँ पर सूत्र में उनका निर्देश नहीं किया गया है, इसका कारण टीकाकार ने यह बताया है कि जम्बूद्वीप के प्रकरण में कहे गये 'महाहिमवंताओ वासहरपव्वयाओ' इत्यादि सूत्र २९० का आश्रय करने से यहां गंगा-सिन्धु आदि नदियों का उल्लेख नहीं किया गया है।
३४०-दो कच्छा, दो सुकच्छा, दो महाकच्छा, दो कच्छावती, दो आवत्ता, दो मंगलवत्ता, दो पुक्खला, दो पुक्खलावई, दो वच्छा, दो सुवच्छा, दो महावच्छा, दो वच्छगावती, दो रम्मा, दो रम्मगा, दो रमणिज्जा, दो मंगलावती, दो पम्हा, दो सुपम्हा, दो महपम्हा, दो पम्हगावती, दो संखा, दो णलिया, दो कुमुया, दो सलिलावती, दो वप्पा, दो महावप्पा, दो वप्पगावती, दो वग्गू, दो