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तृतीय स्थान प्रथम उद्देश
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गर्हा-सूत्र
२६– तिविहा गरहा पण्णत्ता, तं जहा—मणसा वेगे गरहति, वयसा वेगे गरहति, कायसा वेगे गरहति—पावाणं कम्माणं अकरणयाए।
अहवागरहा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा–दीहंपेगे अद्धं गरहति, रहस्संपेगे अद्धं गरहति, कायंपेगे पडिसाहरति—पावाणं कम्माणं अकरणयाए।
गर्दा तीन प्रकार की कही गई है कुछ लोग मन से गर्दा करते हैं, कुछ लोग वचन से गर्दा करते हैं और कुछ लोग काया से गर्दा करते हैं—पाप कर्मों को नहीं करने के रूप से। अथवा गर्दा तीन प्रकार की कही गई है—कुछ लोग दीर्घकाल तक पाप-कर्मों की गर्दा करते हैं, कुछ लोग अल्प काल तक पाप-कर्मों की गर्दा करते हैं और कुछ लोग काया का निरोध कर गर्दा करते हैं—पाप कर्मों को नहीं करने के रूप से (भूतकाल में किये गये पापों की निन्दा करने को गर्दा कहते हैं।) (२६)। प्रत्याख्यान-सूत्र
२७–तिविहे पच्चक्खाणे पण्णत्ते, तं जहा—मणसा वेगे पच्चक्खाति, वयसा वेगे पच्चक्खाति, कायसा वेगे पच्चक्खाति [पावाणं कम्माणं अकरणयाए।
- अहवा-पच्चक्खाणे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा–दीहंपेगे अद्धं पच्चक्खाति, रहस्संपेगे अद्धं पच्चक्खाति, कायंपेगे पडिसाहरति—पावाणं कम्माणं अकरणयाए]।
प्रत्याख्यान तीन प्रकार का कहा गया है कुछ लोग मन से प्रत्याख्यान करते हैं, कुछ लोग वचन से प्रत्याख्यान करते हैं और कुछ लोग काया से प्रत्याख्यान करते हैं (पाप-कर्मों को आगे नहीं करने के रूप से।
अथवा प्रत्याख्यान तीन प्रकार का कहा गया है—कुछ लोग दीर्घकाल तक पापकर्मों का प्रत्याख्यान करते हैं, कुछ लोग अल्पकाल तक पापकर्मों का प्रत्याख्यान करते हैं और कुछ लोग काया का निरोध कर प्रत्याख्यान करते हैं पाप-कर्मों को आगे नहीं करने के रूप से (भविष्य में पापकर्मों के त्याग को प्रत्याख्यान कहते हैं।) (२७)। उपकार-सूत्र
२८– तओ रुक्खा पण्णत्ता, तं जहा—पत्तोवगे, पुष्फोवगे, फलोवगे।
एवामेव तओ पुरिसजाता पण्णत्ता, तं जहा—पत्तोवारुक्खसमाणे, पुष्फोवारुक्खसमाणे, फलोवारुक्खसमाणे।
वृक्ष तीन प्रकार के कहे गये हैं—पत्रों वाले, पुष्पों वाले और फलों वाले। इसी प्रकार पुरुष भी तीन प्रकार के कहे गये हैं—पत्रों वाले वृक्ष के समान अल्प उपकारी, पुष्पों वाले वृक्ष के समान विशिष्ट उपकारी और फलों वाले वृक्ष के समान विशिष्टतर उपकारी (२८)।
विवेचनकेवल पत्ते वाले वृक्षों से पुष्पों वाले और उनसे भी अधिक फल वाले वृक्ष लोक में उत्तम माने जाते हैं। जो पुरुष दुःखी पुरुष को आश्रय देते हैं वे पत्रयुक्त वृक्ष के समान हैं। जो आश्रय के साथ उसके दुःख दूर करने का आश्वासन भी देते हैं, वे पुष्पयुक्त वृक्ष के समान हैं और उसका भरण-पोषण भी करते हैं वे फलयुक्त वृक्ष