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स्थानाङ्गसूत्रम्
मोह-पद
४२२– दुविहे. मोहे पण्णत्ते, तं जहा—णाणमोहे चेव, दंसणमोहे चेव। ४२३– दुविहा मूढा पण्णत्ता, तं जहा—णाणमूढा चेव, दंसणमूढा चेव।
मोह दो प्रकार का कहा गया है—ज्ञानमोह और दर्शनमोह (४२२)। मूढ दो प्रकार के कहे गये हैं—ज्ञानमूढ और दर्शनमूढ (४२३)। कर्म-पद
४२४– णाणावरणिजे कम्मे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा—देसणाणावरणिजे चेव, सव्वणाणावरणिजे चेव। ४२५–दरिसणावरणिज्जे कम्मे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा—देसदरिसणावरणिज्जे चेव, सव्वदरिसणावरणिजे चेव। ४२६– वेयणिजे कम्मे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा सातावेयणिज्जे चेव, असातावेयणिजे चेव। ४२७– मोहणिजे कम्मे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा—दसणमोहणिज्जे चेव, चरित्तमोहणिजे चेव। ४२८- आउए कम्मे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा—अद्धाउए चेव, भवाउए चेव। ४२९–णामे कम्मे दुविहे पण्णत्ते तं जहा—सुभणामे चेव, असुभणामे चेव। ४३०-गोत्ते कम्मे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा—उच्चागोते चेव, णीयागोते चेव। ४३१- अंतराइए कम्मे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा—पडुप्पण्णविणासिए चेव, पिहितआगामिपहं चेव। .
ज्ञानावरणीय कर्म दो प्रकार का कहा गया है—देशज्ञानावरणीय (मतिज्ञानावरण आदि) और सर्वज्ञानावरणीय (केवलज्ञानावरण) (४२४)। दर्शनावरणीय कर्म दो प्रकार का कहा गया है—देशदर्शनावरणीय और सर्वदर्शनावरणीय (केवलदर्शनावरण) (४२५)। वेदनीय कर्म दो प्रकार का कहा गया है—सातावेदनीय और असातावेदनीय (४२६)। मोहनीय कर्म दो प्रकार का कहा गया है—दर्शनमोहनीय और चारित्रमोहनीय (४२७)। आयुष्यकर्म दो प्रकार का कहा गया है—अद्धायुष्य (कायस्थिति की आयु) और भवायुष्य (उसी भव की आयु) (४२८)। नामकर्म दो प्रकार का कहा गया है शुभनाम और अशुभनाम (४२९)। गोत्रकर्म दो प्रकार का कहा गया है-उच्चगोत्र और नीचगोत्र (४३०)। अन्तरायकर्म दो प्रकार का कहा गया है—प्रत्युत्पन्नविनाशि (वर्तमान में प्राप्त वस्तु का विनाश करने वाला) और पिहित-आगामिपथ अर्थात् भविष्य में होने वाले लाभ के मार्ग को रोकने वाला (४३१)। मूर्छा-पद
४३२- दुविहा मुच्छा पण्णत्ता, तं जहा—पेजवत्तिया चेव, दोसवत्तिया चेव। ४३३पेजवत्तिया मुच्छा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा—माया चेव, लोभे चेव। ४३४- दोसवत्तिया मुच्छा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा–कोहे चेव, माणे चेव।
मूर्छा दो प्रकार की कही गई है—प्रेयस्प्रत्यया (राग के कारण होने वाली मूर्छा) और द्वेषप्रत्यया (द्वेष के कारण होने वाली मूर्छा) (४३२)। प्रेयस्प्रत्यया मूर्छा दो प्रकार की कही गई है—मायारूपा और लोभरूपा (४३३)। द्वेषप्रत्यया मूर्छा दो प्रकार की कही गई है—क्रोधरूपा और मानरूपा (४३४)। आराधना-पद
४३५- दुविहा आराहणा पण्णत्ता, तं जहा धम्मियाराहणा चेव, केवलिआराहणा चेव।