Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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स्थानाङ्गसूत्रम्
नारक दो प्रकार कहे गये हैं—भव्यसिद्धिक और अभव्यसिद्धिक। इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त सभी दण्डकों में दो-दो भेद जानना चाहिए (१७७)।
पुनः नारक दो प्रकार के कहे गये हैं— अनन्तरोपपन्नक और परम्परोपपन्नक । इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त सभी दण्डकों में दो-दो भेद जानना चाहिए (१७८) ।
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पुनः नारक दो प्रकार के कहे गये हैं—गतिसमापन्नक (अपने उत्पत्तिस्थान को जाते हुए) और अगतिसमापन्नक (अपने भव में स्थित) । इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त सभी दण्डकों में दो-दो भेद जानना चाहिए (१७९)।
पुनः नारक दो प्रकार के कहे गये हैं— प्रथमसमयोपपन्नक और अप्रथमसमयोपपन्नक। इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त सभी दण्डकों में दो-दो भेद जानना चाहिए (१८० ) ।
पुनः नारक दो प्रकार के कहे गये हैं—– आहारक और अनाहारक। इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त सभी दण्डकों में दो-दो भेद जानना चाहिए (१८१) ।
पुनः नारक दो प्रकार के कहे गये हैं— उच्छ्वासक (उच्छ्वास पर्याप्ति से पर्याप्त ) और नोउच्छ्वासक (उच्छ्वास पर्याप्ति से अपूर्ण) । इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त सभी दण्डकों में दो-दो भेद जानना चाहिए (१८२) ।
पुनः नारक दो प्रकार के कहे गये हैं— सेन्द्रिय (इन्द्रिय पर्याप्ति से पर्याप्त) और अनिन्द्रिय (इन्द्रिय पर्याप्ति से अपर्याप्त) इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त सभी दण्डकों में दो-दो भेद जानना चाहिए (१८३) ।
पुनः नारक दो प्रकार के कहे गये हैं- पर्याप्तक (पर्याप्तियों से परिपूर्ण) और अपर्याप्तक (पर्याप्तियों से अपूर्ण) । इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त सभी दण्डकों में दो-दो भेद जानना चाहिए (१८४) ।
१८५- दुविहा णेरड्या पण्णत्ता, तं जहा सण्णी चेव, असण्णी चेव । एवं पंचेंदिया सव्वे विगलिंदियवज्जा जाव वाणमंतरा । १८६ – दुविहा णेरड्या पण्णत्ता, तं जहा— भासगा चेव, अभासगा चेव । एवमेगिंदियवज्जा सव्वे । १८७– दुविहा णेरड्या पण्णत्ता, तं जहा ——– सम्मद्दिट्ठिया चेव, मिच्छद्दिट्टिया चेव । एगिंदियवज्जा सव्वे । १८८ - दुविहा णेरड्या पण्णत्ता, तं जहा—परित्तसंसारिया चेव, अणंतसंसारिया चेव । जाव वेमाणिया । १८९- दुविहा णेरड्या पण्णत्ता, तं जहा— संखेज्जकालसमयडितिया चेव, असंखेज्जकालसमयद्वितिया चेव । एवं पंचेंदिया एगिंदियविगलिंदियवज्जा जाव वाणमंतरा । १९०– दुविहा णेरड्या पण्णत्ता, तं जहा— सुलभबोधिया चेव, दुलभबोधिया चेव जाव वेमाणिया । १९१ - दुविहा णेरड्या पण्णत्ता, तं जहा —–— कण्हपक्खिया चेव, सुक्कपक्खिया चेव जाव वेमाणिया । १९२ – दुविहा णेरड्या पण्णत्ता, तं जहा— चरिमा चेव, अचरिमा चेव जाव वेमाणिया ।
पुनः नारक दो प्रकार के कहे गये हैं— संज्ञी (मनः पर्याप्ति से परिपूर्ण) और असंज्ञी (जो असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनि से नारकियों में उत्पन्न होते हैं)। इसी प्रकार विकलेन्द्रिय जीवों को छोड़कर वान - व्यन्तर तक के सभी दण्डकों में दो-दो भेद जानना चाहिए (१८५) ।
पुनः नारक दो प्रकार के कहे गये हैं— भाषक ( भाषापर्याप्ति से परिपूर्ण) और अभाषक (भाषापर्याप्ति से अपूर्ण) । इसी प्रकार एकेन्द्रियों को छोड़कर सभी दण्डकों में दो-दो भेद जानना चाहिए (१८६) ।
पुनः नारक दो प्रकार के कहे गये हैं— सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि । इसी प्रकार एकेन्द्रियों को छोड़कर सभी