Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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द्वितीय स्थान —
- तृतीय उद्देश
५९
कही गई हैं—विवेकप्रतिमा और व्युत्सर्गप्रतिमा (२४४) । पुनः प्रतिमा दो प्रकार की कही गई हैं— भद्रा और सुभद्रा (२४५) । पुनः प्रतिमा दो प्रकार की कही गई है— महाभद्रा और सर्वतोभद्रा (२४६) । पुनः प्रतिमा दो प्रकार की कही गई है— क्षुद्रक मोक प्रतिमा और महती मोक प्रतिमा ( २४७) । पुनः प्रतिमा दो प्रकार की कही गई - यवमध्य-चन्द्र- प्रतिमा और वज्रमध्य-चन्द्र प्रतिमा ( २४८ ) ।
विवेचन—– टीकाकार ने 'प्रतिमा' का अर्थ प्रतिपत्ति, प्रतिज्ञा या अभिग्रह किया है। आत्मशुद्धि के लिए जो विशिष्ट साधना की जाती है उसे प्रतिमा कहा गया है। श्रावकों की ग्यारह और साधुओं की बारह प्रतिमाएं हैं। प्रस्तुत छह सूत्रों के द्वारा साधुओं की बारह प्रतिमाओं का निर्देश द्विस्थानक के अनुरोध से दो-दो के रूप में किया गया है। इनका अर्थ इस प्रकार है—
१. समाधि प्रतिमा— अप्रशस्त भावों को दूर कर प्रशस्त भावों की श्रुताभ्यास और सदाचरण के द्वारा वृद्धि
करना ।
२. उपधान प्रतिमा— उपधान का अर्थ है तपस्या । श्रावकों की ग्यारह और साधुओं की बारह प्रतिमाओं में से अपने बल-वीर्य के अनुसार उनकी साधना करने को उपधान प्रतिमा कहते हैं ।
३. विवेक प्रतिमा— आत्मा और अनात्मा का भेद - चिन्तन करना, स्व और पर का भेद - ज्ञान करना । जैसा मेरा आत्मा ज्ञान-दर्शन स्वरूप है और क्रोधादि कषाय तथा शरीरादिक मेरे से सर्वथा भिन्न हैं । इस प्रकार के चिन्तन से पर पदार्थों से उदासीनता और आत्मस्वरूप से संलीनता प्राप्त होती है, तथा हेय-उपादेय का विवेक-ज्ञान प्रकट होता है।
उनका
४. व्युत्सर्ग प्रतिमा — विवेक प्रतिमा के द्वारा जिन वस्तुओं को हेय अर्थात् छोड़ने के योग्य जाना है, त्याग करना व्युत्सर्ग प्रतिमा है।
५. भद्रा प्रतिमा पूर्व, दक्षिण, पश्चिम और उत्तर — इन चारों दिशाओं में क्रमशः चार-चार प्रहर तक कायोत्सर्ग करना। यह प्रतिमा दो दिन-रात में दो उपवास के द्वारा सम्पन्न होती है।
६. सुभद्रा प्रतिमा — इसकी साधना भी भद्रा प्रतिमा से ऊंची संभव है । किन्तु टीकाकार के समय में भी इसकी विधि विच्छिन्न या अज्ञात हो गई थी ।
७. महाभद्र प्रतिमा— चारों दिशाओं में क्रम से एक-एक अहोरात्र तक कायोत्सर्ग करना । यह प्रतिमा चार दिन-रात में चार दिन के उपवास के द्वारा सम्पन्न होती है।
८. सर्वतोभद्र प्रतिमा— चारों दिशाओं, चारों विदिशाओं तथा ऊर्ध्व दिशा और अधोदिशा — इन दशों दिशाओं में कम से कम एक-एक अहोरात्र तक कायोत्सर्ग करना । यह प्रतिमा दश दिन-रात और दश दिन के उपवास से पूर्ण होती है। पंचम स्थानक में इसके दो भेदों का भी निर्देश है, उनका विवेचन नहीं किया जाएगा।
९. क्षुद्रक - मोक प्रतिमा— मोक नाम प्रस्रवण (पेशाब) का है। इस प्रतिमा का साधक शीत या उष्ण ऋतु प्रारम्भ में ग्राम से बाहर किसी एकान्त स्थान में जाकर और भोजन का त्याग कर प्रात:काल सर्वप्रथम किये गये प्रस्रवण का पान करता है। यह प्रतिमा यदि भोजन करके प्रारम्भ की जाती है तो छह दिन के उपवास से सम्पन्न होती है और यदि भोजन न करके प्रारम्भ की जाती है तो सात दिन के उपवास से सम्पन्न होती है। इस प्रतिमा की साधना के तीन लाभ बतलाए गए हैं— सिद्ध होना, महर्द्धिक देवपद पाना और शारीरिक रोग से मुक्त होना ।