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( ११५ )
अवहानि: [ प्रा० स०] खो जाना, घाटा । अवहारः [ अव + ह् + ण] 1. चोर, 2. शार्क नाम की मछली 3. अस्थायी युद्धविराम, सन्धि, 4. बुलावा, आमंत्रण 5. धर्मत्याग 6. सुपुर्दगी, वापस लेना । अवहारकः | अव + ह् + ण्वुल् ] शार्क मछली । अवहार्य (सं० कृ० ) [ अव + ह् + ण्यत् ] 1. ले जाने के
योग्य, हटाने के योग्य 2. दंड के योग्य, सजा दिये जाने के योग्य, 3. पुनः प्राप्त करने योग्य, फिर मोल लेने के योग्य ।
अवहालिका [ अव + ल् + ण्वुल्+टाप् इत्व ] दीवार । अवहासः ] अव + हस्+घञ्ञ ] 1. मुस्कराना, मुस्कान, 2. दिल्लगी, मजाक, उपहास - यच्च वहासार्थमसत्कृतोऽसि भग० ११।४२ ।
अव (ब) हत्या-त्थम् [ न बहिः तिष्ठति इति स्था+क पृषो० ]1. पाखंड, 2 आन्तरिक भावगोपन, ३३ व्यभिचारिभावों में से एक भयगौरवलज्जा देर्पाद्याकारगुप्तिरवहित्था सा० द०; रस० के अनुसार ब्रीडादिना निमित्तेन हर्षाद्यनुभावानां गोपनाय जनितो भावविशेषोऽवहित्थम् - उदा० कु० ६१८४, भामि० २३८० । अवहेल: -- ला [ अव + हेल्+क, स्त्रियां टाप् ] अनादर, तिरस्कार, अवहेलना -- अवहेलां कुटज मधुकरे मा गाः- भामि० १६ । अवहेलनम् ना [ अव + हेल् + ल्युट्
स्त्रियां टाप् ]
अवज्ञा ।
अवाक् ( अव्य० ) [ अव + अंच् + क्विन् ] 1. नीचे की ओर 2. दक्षिणी, दक्षिण की ओर । सम० - ज्ञानम् अनादर, भव ( वि०) दक्षिणी मुख ( वि० ) ( स्त्री - खी) 1. नीचे की ओर देखने वाला- -अवाङमुखस्योपरि पुष्पवृष्टिः-- रघु० २२६०, १५/७८, 2. सिर के बल -- - शिरस् ( वि०) नीचे को सिर लटकाये हुए स मूढो नरकं याति कालसूत्रमवाक्शिराः - मनु० ३।२४९, ८/९४ ।
अवाक्ष (वि० ) [ अवनतान्यक्षाणि इन्द्रियाणि यस्य ब० स०] अभिभावक, संरक्षक । अवाप्र ( वि० ) [ अवनतमग्रमस्य - ब० स० ] नीचे को सिर किये हुए, नीचे को झुके हुए । अवाच् (वि० ) [ न० ब० ] वाणीरहित, मूक- ( नपुं० )
— ब्रह्म ।
अवाच् ) ( वि० ) [ अव + अञ्च् + विवन् ] 1. नीचे की अवाञ्च् ओर झुका हुआ मुड़ा हुआ - कुर्वन्तमित्यतिभरेण
नगानवाच:- शि० ६।७९. 2. नीचे की ओर स्थित, अपेक्षाकृत नीचा 3. सिर के बल 4. दक्षिणी (पुं० नपुं० ) ब्रह्म, ची 1. दक्षिणदिशा, 2. निम्नप्रदेश । अवाचीन ( वि० ) [ अवाच् + ख ] 1. नीचे की ओर, सिर के बल 2. दक्षिणी 3. उतरा हुआ ।
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अवाच्य (वि० ) [ न० त०] 1. जिसे संबोधित करना उचित न हो, - अवाच्यो दीक्षितो नाम्ना यवीयानपि यो भवेत् मनु० २।१२८, 2. बोले जाने के अयोग्य, निकृष्ट, दुष्ट- अवाच्यं वदतो जिह्वा कथं न पतिता तव - रामा०, भग० २१३६ 3. अस्पष्ट उक्ति, शब्दों द्वारा अकथनीय | सम० - वेश: बोलने के अयोग्य स्थान, योनि ।
अवांचित (वि०) [ अव + अञ्च् +क्त] झुका हुआ, नीचा । अवान: [ अव + अन् + अच् ] सांस लेना, श्वास अंदर की ओर ले जाना ।
अवान्तर ( वि० ) [ प्रा० स० ] 1. बीच में स्थित या खड़ा हुआ - दे० समास 2. अंतर्गत, सम्मिलित 3. अधीन, गौण 4. घनिष्ट संबंध से रहित, असंबद्ध, अतिरिक्त । सम० दिश् दिशा मध्यवर्ती दिशा (जैसा कि
-आग्नेयी, ऐशानी, नैर्ऋती और वायवी), देशः दो स्थानों का मध्यवर्ती स्थान, अन्तः प्रवेश । अवाप्तिः (स्त्री) [ अव + आप् + क्तिन् ] प्राप्त करना,
ग्रहण करना -- तपः किलेदं तदवाप्तिसाधनम् —कु० ५।६४ ।
अवाप्य (स० कृ० ) [ अव + आप् + ण्यत् ] प्राप्त करने के योग्य ।
अवारः - रम् [ न वार्यते जलेन - वृ· + कर्मणि घञ ] 1. नदी का निकटस्थ किनारा 2. इस ओर । सम० - पारः समुद्र, - पारीण ( वि० ) 1. समुद्र से संबंध रखने वाला 2. समुद्र को पार करने वाला । अवारीणः [ अवार+ख ] नदी को पार करने वाला । अवावट: प्रथम पति को छोड़कर उसी जाति के किसी
दूसरे पुरुष से उत्पन्न हुआ किसी स्त्री का पुत्र - द्वितीयेन तु यः पित्रा सवर्णायां प्रजायते, अवावट इति ख्यातः शूद्रधर्मा स जातितः ॥
अवावन् (पुं० ) [ ओण् (यङ) + वनिप् ] चोर, चुराकर ले जाने वाला ।
अवासस् ( वि० ) [ न० ब० ] वस्त्र न पहने हुए, नंगा (पुं०) बुद्ध | अवास्तव ( वि० ) [स्त्री० वी ] 1. अवास्तविक 2. निराधार, विवेक शून्य ।
अवि: [ अव् +इन् ] 1. मेष [ इसी अर्थ में स्त्री० भी ]
- जीनकार्मुकवस्तावीन्मनु० ११ १३८, ३६, 2. सूर्य 3. पहाड़ 4. वायु, हवा 5. ऊनी कंबल, 6. शाल 7. दीवार, बाड़ा 8. चूहा, विः (स्त्री० ) 1. भेड़ 2. रजस्वला स्त्री । सम०, कटः रेवड़, कटोरणः एक प्रकार का उपहार (जो भेड़ों के रूप में दिया जाता है ) दुग्धम् सन्, मरीसम्, सोढम् भेड़ का दूध, पटः भेड़ की खाल, ऊनी कपड़ा, पाल: गडरिया, — स्थलम् भेड़ों का स्थान, एक नगर का
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