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( ११३ ) १०।१३ । सम०-इन्द्रियचित्त (वि.) जिसका मन लटका हुआ 3. निकटवर्ती, संसक्त 4. वाघायुक्त, और इन्द्रियां किसी दूसरे के अधीन न हो।
. झुका हुआ 5. बांधा हुआ, बंधा हुआ। अवशङ्गमः [न० त०] जो दूसरे की इच्छा के अधीन न हो। अवष्टम्भः [अव+स्तम्भ घिन ] 1. टेक लगाना, अवशातनम् [प्रा० स०] 1. नष्ट करना 2. काटना, काट सहारा लेना 2. आश्रय, आधार-पक्षाभ्यामीषगिराना 3. मुाना, सूख जाना।
त्कृतावष्टम्भ:-का०३४, खड्गलतावष्टम्भनिश्चल:अवशेषः [ अव+शिष् । घञ.] बचा हुआ, शेष, बाकी, मा०३, तत्कथमहं धैर्यावष्टंभं करोमि---पंच० १,
---वृत्तांत°—माल वि० ५, कथा का शेष भाग, अर्ध 3. अहंकार, घमंड 4. थूनी, स्तंभ 5. सोना 6. उपक्रम, या नाम जिसका केवल नाम ही जीवित हो या कथा आरम्भ 7. ठहराना, रोक 8. साहस, दृढ़ निश्चय 9. कहानी में ही जिसका वर्णन हो अथवा जिसका पक्षाघात, स्तब्धता। केवल नाम ही शेष रहा हो, आलं० रूप से मत अवष्टम्भनम् [अव+स्तम्भ + ल्युट् ] 1. टिकना, सहारा पुरुष के लिए प्रयुक्त, सावशेषमिब भट्टिन्या लेना 2.थूनी, स्तम्भ । वचनम् मालाव०४, असमाप्त-शृणु म सावशष अवष्टम्भमय (वि.)[स्त्री०-यी][अवष्टम्भ+मयट] वन:-श० २, मेरी बात सुनो, मुझे अपनी बात पूरी
सुनहरी, सोने का बना हुआ, अथवा खंभे के बराबर करने दो।
लंबा,-रघोरवष्टम्भमयेन पत्रिणा--रघु० ३।५३ अवश्य (वि.) [न० त०] 1. जो वश में न किया जा (अ का अर्थ उपर्यक्त ढंग से किया जाता है, परन्तु
सके, जिसको नियन्त्रण में न लाया जा सके 2. अनि- प्रस्तुत प्रसंग में इसका अर्थ होगा 'ओजस्वी, वार्य-अथ मरणमवश्यमेव जन्तोः - वेणी० ४।४, 3. साहसी')। अनुपेक्ष्य, आवश्यक । सम०--पुत्रः ऐसा बेटा जिसको अवसक्त (भू० क० कृ०)[अव--स +क्त ] 1. स्थगित, सिखाना या शासन में रखना असंभव हो।
प्रस्तुत 2. संपर्कशील, स्पर्शी। अवश्यम् (अव्य०) [अव+श्य+डमु - तारा०] 1. | अवसक्थिका [अवबद्धे सक्थिनी यस्यां कप्] 1. कपड़े की
आवश्यकरूप से, अनिवार्य रूप से त्वामप्यत्रं नव- पट्टी जो घुटनों के नीचे पैरों में लपेटी जाती है, इस जलमयं मोचयिष्यन्त्यवश्यम-मेघ० ९५, 2. निश्चय प्रकार पट्टी या पटके से बांधना या पटुका बांध कर से, चाहे कुछ भी हो, सर्वथा, यकीनन, निस्संदेह विशेष मुद्रा में होना- शयानः प्रौढपादश्च कृत्वा -अवश्यं यातारश्चिरतरमषित्वापि विषयाः-भर्त० ३। चैवावसक्थिकाम्---मनु० ४।११२, 2. अत: वेष्टन, १६, तां चावश्यं दिवसगणनातत्परामेकपत्नीम् (द्रक्ष्य- पटका या पट्टी। सि) मेघ०, १०।६३, अवश्यमेव अत्यन्त निश्चयपूर्वक, | अवसण्डीनम [अव+सम्+डी+क्त] पक्षियों के झुंड की यदि इसे स० कृ० के साथ जोड़ा जाता है तो इसका नीचे की ओर उड़ान। अन्त्य अनुनासिकत्व लुप्त हो जाता है—अवश्यपाच्य | अवसथः [अव+सो--कथन ] 1. आवासस्थान, घर 2. --जो निश्चित रूप से पकाया जाय, अवश्यकार्य--जो गाँव 3. विद्यालय या महाविद्यालय, दे० 'आवसथ' । निश्चित रूप से किया जाता है।
अवसथ्यः [ अवसथ-+-यत् ] महाविद्यालय, विद्यालय । अवश्यम्भाविन् (वि.) [अवश्यम् + भू- इनि] अवश्य
अवसन्न (भू० कृ० कृ०) [अव+सद्+क्त ] 1. उदास होने वाला, अनिवार्य-अवश्यम्भाविनो भावा भवन्ति
(आलं भी) शिथिल 2. समाप्त, अवसित, बीता महतामपि-हि०प्र० २८ ।
हुआ--अवसन्नाया रात्री-हि० १, 3. खोया हुआ, अवश्यक (वि०) [ अवश्य -कन् ] आवश्यक, अनिवार्य, | वंचित -रघु० ९१७७ । अनपेक्ष्य।
अवसरः [अव+स-अच्] 1. मौका, सुयोग, समय अवश्या [ अव+श्य+क] कुहरा, पाला, धुंद ।
-नास्यावसरं दास्यामि-श० २, भवगिरामवसरअवश्यायः [अब+ये+ण] 1. कुहरा, ओस 2. पाला, प्रदानाय वचांसि नः—शि० २१७, विसर्जन सत्कार:
सफेद ओस-अवश्यायावसिक्तस्य पुण्डरीकस्य चारुताम् श० ७. प्राप्तम्—मौके के मुताविक-मालवि०१, २ - उत्तर०६।२९, 3. घमंड।
(अतः) उपयुक्त सुयोग—शशंस सेवावसरं सुरेभ्यः अवधयणम् [अव+श्रि+ल्युट ] आग के ऊपर से कोई कु० ७।४०, अवसरोऽयमात्मानं प्रकाशयितुम् - श०
वस्तु उतारना (वि० 'अधिश्रयणम्')-अधिश्रयणाव- १, दे० 'अनवसर' भी 3. स्थान, जगह, क्षेत्र 4. अवश्रयणान्तादिपूर्वापरीभूतो व्यापारकलाप: पाकादिशब्द काश, लाभप्रद अवस्था 5. वत्सर 6 वर्षण 7. उतार वाच्य :-....सा० द०२।।
8. गुप्त परामर्श । अवष्टब्ध (भू० क० कृ०) [अव+स्तम्भ-+क्त ] 1. अवसर्गः / अव+सज+घन] 1 मुक्त करना, ढीला
सहारा दिया गया, थामा गया, पकड़ा गया 2. से पर करना 2. स्वेच्छानुसार कार्य करने देना 3. स्वतंत्रता।
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