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यापनीय साहित्यकी खोज
यापनीय संघ जैनधर्मके मुख्य दो सम्प्रदाय हैं, दिगम्बर और श्वेताम्बर । इन दोनोंके अनुयायी लाखों हैं और साहित्य भी विपुल है, इसलिए इनके मतों और मतभेदोंसे साधारणतः सभी परिचित हैं, परन्तु, इस बातका बहुत ही कम लोगोंको पता है कि इन दोके अतिरिक्त एक तीसरा सम्प्रदाय भी था जिसे 'यापनीय' या 'गोप्य' संघ कहते थे और जिसका इस समय एक भी अनुयायी नहीं है ।
यह सम्प्रदाय भी बहुत प्राचीन है। दर्शनसारके कर्त्ता देवसेनसूरिके कथनानुसार कमसे कम वि० सं० २०५ से तो इसका पता चलता ही है और यह समय दिगम्बर-श्वेताम्बरें उत्पत्तिसे सिर्फ ६०-७० वर्ष बाद पड़ता है। इसलिए यदि मोटे तौरपर यह कहा जाय कि ये तीनों ही सम्प्रदाय लगभग एक ही समयके हैं तो कुछ बड़ा दोष न होगा, विशेष कर इसलिए कि सम्प्रदायोंकी उत्पत्तिकी जो तिथियाँ बताई जाती हैं वे बहुत सही नहीं हुआ करतीं ।
किसी समय यह सम्प्रदाय कर्नाटक और उसके आसपास बहुत प्रभावशाली रहा है। कदम्बै, राष्ट्रकूटें और दूसरे वंशोंके राजाओंने इस संघको और इसके
१ कल्लाणे वरणयरे दुण्णिसए पंचउत्तरे जादे ।
जावणियसंघभावो सिरिकलसादो हु सेवडदो ॥ २९ ।। २ छत्तीसे वरिससए विक्कमरायस्स मरणपत्तस्स ।
। सोरटे वलहीए उप्पण्णो सेवडो संघो ॥ १ ॥ श्वेताम्बर सम्प्रदायके अनुसार दिगम्बरोंकी उत्पत्ति वीरनिर्वाणके ६०९ वर्ष बाद (वि० सं० १३९ में ) हुई है।
३ कदम्बवंशी राजाओंके दानपत्र, देखो जैनहितैषी, भाग १४, अंक ७-८ । ४ देखो, इं० ए० १२ पृ० १३-१६ में राष्ट्रकूट प्रभूतवर्षका दानपत्र । ५ देखो इं० ए० जिल्द २ प० १५६-५९ में पथ्वीकोंगणि महाराजका दानपत्र ।