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महाकवि पुष्पदन्त
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उल्लेख किया है । मेलपाटीमें पहुँचनेपर सबसे पहले उन्हें दो पुरुष मिले जिनके नाम अम्मइय और इन्द्रराय थे । ये वहाँके नागरिक थे और इन्हींने भरतमंत्रीकी प्रशंसा करके उनके यहाँ नगरमें चलनेका आग्रह किया था । उत्तरपुराणके अन्तमें सबकी शांति-कामना करते हुए उन्होंने संत, देवल्ल, भोगल्ल, सोहण, गुणवर्म, दंगइय और संतइयका उल्लेख किया है । इनमेंसे संतको बहुगुणी, दयावान् और भाग्यवान् बतलाया है । देवल्ल संतका पुत्र था जिसने महापुराणका सारी पृथिवीमें प्रसार किया । भोगल्लको चतुर्विधदानदाता, भरतका परममित्र, अनुपमचरित्र और विस्तृतयशवाला क्लाया है । शोभन और गुणवर्मको निरन्तर जिनधर्मका पालनेवाला कहा है । नागकुमारचरितके अनुसार ये महोदधिके शिष्य थे। इन्होंने नागकुमारचरितकी रचना करने की प्रेरणा की थी। दंगइय और संतइयकी भी शान्ति कामना की है । नागकुमारचरितमें दंगइयको आशीर्वाद दिया है कि उसका रत्नत्रय विशुद्ध हो । नाइल्ल और सीलइयका भी उल्लेख है। इन्होंने भी नागकुमारचरित रचनेका आग्रह किया था ।
कविके समकालीन राजा महापुराणकी उत्थानिकामें कहा है कि इस समय ' तुडिगु महानुभाव' राज्य कर रहे हैं। इस ' तुडिगु' शब्दपर टिप्पण-ग्रन्थमें 'कृष्णराजः' टिप्पण दिया हुआ है । कृष्णराज दक्षिणके सुप्रसिद्ध राष्ट्र कृटवंशमें हुए हैं और अपने समयके महान् सम्राट थे । 'तुडिगु' उनका घरू प्राकृत नाम था । इस तरहके घरू नाम राष्ट्रकूट और चालुक्य वशके प्रायः सभी राजाओंके मिलते हैं। __ वल्लभनरेन्द्र, वल्लभराय, शुभतुंगदेव और कण्हराय नामसे भी कविने उनका उल्लेख किया है। _ शिलालेखों और दानपत्रोंमें अकालवर्ष, महाराजाधिराज, परमेश्वर, परममाहेश्वर, परमभट्टारक, पृथिवीवल्लभ, समस्तभुवनाश्रय आदि उपाधियाँ उनके लिए प्रयुक्त की गई हैं।
वल्लभराय पदवी पहले दक्षिणके चौलुक्य राजाओंकी थी, पीछे जब उनका राज्य राष्ट्रकूटोने जीत लिया तब इस वंशके राजा भी इसका उपयोग करने लगे।
१ जैसे गोज्जिग, बांदग, तुडिग, पुट्टिग, खोट्टिग आदि ।
२ अरब लेखकोंने मानकिरके बल्हरा नामक बलाढ्य राजाओंका जो उल्लेख किया है, वह मान्यखेटके 'वल्लभराज' पद धारण करनेवाले राजाओंको ही लक्ष्य करके किया है।