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जयकीर्त्तिका छन्दोऽनुशासन
अनेकान्तकी पाँचवीं किरणमें योगसार और अमृताशीति नामका एक नोट प्रकाशित हुआ है, जिसमें डॉ. पिटसनकी पाँचवीं रिपोर्ट के आधारमें योगसारकी उस प्रतिका उल्लेख किया गया है, जो संवत् ११९२ की ज्येष्ठ सुदी १३ को जयकीर्तिसूरिके शिष्य अमलकीर्तिने लिखवाई थी
श्रीजयकीर्तिसूरीणां, शिष्येणामलकीर्तिना।
लेखितं योगसाराख्यं विद्यार्थिवामकीर्तिनात् ।। अमलकीर्त्तिके गुरु इन्हीं जयकार्तिका बनाया हुआ 'छन्दोग्नुशासन' नामका एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ जैसलमेरके सुप्रसिद्ध श्वेताम्बर पुस्तक-भंडारमें है, जिसका प्रारम्भिक और अन्तिम अंश इस प्रकार है--- प्रारंभ -
श्री वर्द्धमानमानम्य छंदसा पूर्वमक्षरम् । लक्ष्यलक्षणमावीक्ष्य वश्ये छन्दोऽनुशासनम् ।। छन्दःशास्त्रं वहिनं तद्विविक्षोः काव्यसागरम् ।
छन्दोभाग्वाङ्मयं सर्व न किंचिच्छन्दसो विना ॥ २ ॥ अन्त
माण्डव्य-पिंगल-जनाश्रय-सेतवाख्यश्रीपूज्यपाद-जयदेव-बुधादिकानाम् । छन्दासि वीक्ष्य विविधानपि सत्प्रयोगान्
छन्दोऽनुशासनमिदं जयकीर्तिनोक्तम् ।। इति जयकीर्तिकृतौ छन्दोऽनुशासन-संवत् ११९२ आषाढ़ शुदि १० शनौ लिखितमिदमिति ।
ये दोनों अंश बड़ौदाकी गायकवाड़-संस्कृत-सीरीजमें प्रकाशित ‘जैसलमेरभाण्डागारीयग्रंथानां सूची 'में प्रकट हुए हैं। इस सूचीके सम्पादक महाशयने