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छानबीन
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बड़े-बड़े नगरोंमें जहाँ जैनोंका जन-संघ काफी होता था, ऐसा मालूम होता है कि वहाँके सर्वप्रधान मुखियाको भी ' संघपति' कहा जाता था ।
प्राचीन शिखालेखों, प्रतिमालेखों और ग्रन्थ-प्रशस्तियों में संघपतिका संक्षिप्तरूप 'सं० ' लिखा मिलता है । शायद यह पद आगेके वंशधरोंको भी परम्परासे प्राप्त होता था।
२-साधु और साहु 'साधु' शब्द का प्राकृत रूप ' साहु' होता है, और चूँकि 'साहु' लोकभाषामें एक प्रचलित पदवी थी, इसलिए जब संस्कृतके लेखकों को अपनी संस्कृत रचनामें उसके निर्देशकी आवश्यकता हुई, तब उन्होंने उसका संस्कृतरूप 'साधु' बना लिया और साहुकी पत्नी ' साहुणी'को ' साध्वी' । परन्तु इन शब्दोंसे प्रायः भ्रम हो जाया करता है । आम तौरसे साधु शब्दका उच्चारण करते ही हमारे सामने मुनि या यतिका भाव आ जाता है और साध्वीसे आर्यिका या तपस्विनीका । परन्तु ग्रन्थ-प्रशस्तियों प्रतिमा-लेखों आदिमें साधु शब्द साहूकार या धनी गृहस्थके अर्थमें ही अधिकतासे व्यवहार किया गया गया है और साध्वी उसकी पत्नीके लिए। __पं० आशाधरजीने अपनी प्रशस्तिमें एक जगह लिखा है-" मुग्धबुद्धिप्रबोधाय महीचन्द्रेण साधुना, धर्मामृतस्य सागारधर्मटीकास्ति कारिता।” इसका अर्थ बड़े बड़े पंडितोतकने यही कर डाला है कि महीचन्द्र नामक साधुने टीका बनवाई। परन्तु वास्तवमें महीचन्द्र एक साहू या सेठ थे । यथार्थमें साहु या शाह शब्द फारसी भाषाका है जिसका अर्थ स्वामी, राजा, सज्जन, महाजन आदि होता है । मुसलमान-कालमें यह शब्द लोकभाषामें प्रचलित हो गया था । संस्कृतमें भी साधु शब्द भला, सज्जन आदि अर्थों में व्यवहृत होता था, इसलिए यद्यपि 'साहु' का 'साधु' रूप बहुत दूरवर्ती नहीं हो जाता है, फिर भी यह ' साहु' शब्द संस्कृतसे आया हुआ नहीं मालूम होता ।
३-पति-पत्नीके समान नाम कथा-ग्रन्थों में अक्सर भविष्यदत्त सेठ भविष्यदत्ता सेठानी, सोमदत्त ब्राह्मण सोमश्री ब्राह्मणी, धनदत्त धनदत्ता, यज्ञदत्त यज्ञदत्ता आदि पति-पत्नियोंके एकसे निम मिलते हैं । इससे आजकलके पढ़नेवालोंको यह खयाल हो जाता है कि ये सब