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जैनसाहित्य और इतिहास
उल्लेख किया है और उन्होंने उन्हें हरिवंशका पहला उत्पादक बतलाया है, अर्थात् हरिवंश -कथापर भी शायद सबसे पहला ग्रन्थ विमलसूरिका ही था - बुहयणसहस्सदइयं हरिवंसुपपत्तिकारयं पढमं ।
वंदामि वंदियं पिहू हरिवंसं चेव विमलपयं ॥ ३८
अर्थात् मैं हजारों पंडितों के प्यारे, हरिवंशोलत्तिकारक, पहले, वंदनीय और विमलपद, हरिवंशकी बन्दना करता हूँ । इसमें जो विशेषण दिये गये हैं, वे हरिवंश और विमल-पद ( विमल- सूरि के चरण अथवा विमल हैं पद जिसके ऐसा ग्रन्थ ) दोनोंपर घटित होते हैं ।
विमलसूरिका यह हरिवंश अभी तक कहीं प्राप्त नहीं हुआ है । इसके प्राप्त होने पर जिनसेनके हरिवंशका मूल क्या है, इसपर बहुत कुछ प्रकाश पड़ने की संभावना है । संभव है पद्मपुराण के समान यह भी विमलसूरिके हरिवंशकी छाया लेकर ही बनाया गया हो ।
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२ - इस लेख में ( पृ० २८५ ) में हमने लिखा है कि " अभी अभी एक विद्वान से मालूम हुआ है कि श्वेताम्बर सम्प्रदाय के भी एक प्राचीन ग्रन्थमें भ० महावीरको अविवाहित बतलाया है । सो वह प्राचीन ग्रन्थ आवश्यक-निर्युक्ति है । उसमें लिखा है
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वीरं अरिनेमिं पास मल्लिं च वासुपुजं च । एए मुत्तू जिणे अवसेसा आसि रायाणो ॥ २२१॥
रायकुलेमुवि जाया विसुद्भवंसेसु खत्तिअकुलेसु ।
य इत्थिआभिसेआ कुमारवासंमि पव्वइया ॥ २२२ ॥
इसके ' णयइत्थिआभिसेआ ' पदकी टिप्पणी में लिखा है - " स्त्री- पाणिग्रहण - राज्याभिषेकोभयरहिता इत्यर्थः । " अर्थात् महावीर, अरिष्टनेमि, पार्श्व, मल्लि, और वासुपूज्य ये पाँच तीर्थकर ऐसे हुए हैं कि न इनका स्त्री- पाणिग्रहण हुआ और न राज्याभिषेक | ये क्षत्रियराजकुलोत्पन्न थे और कुमारावस्था में ही प्रव्रजित हो गये थे ।
महाकवि पुष्पदन्त ( पृ० ३०१-३३४ ) हमने अनुमान किया था कि आचार्य हेमचन्द्र ने ' अभिमानचिह्न नामक ग्रन्थकर्ताका जो उल्लेख किया है, वे शायद पुष्पदन्त ही हों । क्योंकि
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