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परिशिष्ट
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भद्दणराजप्रभृताना पुरुदवस्य भगवतः शिष्याणां शिगमनागमे प्रतीतमेव । " यह भद्दणराज आदिकी अन्तर्मुहूर्तमें निर्वाण-प्राप्तिकी कथा भी दिगम्बर साहित्यमें नहीं मिलती।
३–मेदज या मेतार्य मुनिकी कथा, पीछेसे मालम हुआ कि हरिषेणकृत कथाकोशमें है, यद्यपि उसमें और श्वेताम्बर कथामें बहुत कुछ भिन्नता है। ___४-पृ० ४२ की दूसरी टिप्पणी कहींकी कहीं छप गई है। असलमें वह 'अनेक भूमिदानादि किये गये थे।' इस वाक्यकी टिप्पणी है ।
_ आचार्य अमितगति ( १७२-१८२) पंडित गोविन्दरायजी काव्यतीर्थक लख ( जैनमित्र, १३ नवम्बर १९४१) से मालूम हुआ कि आचार्य अमितगतिने अपना पंचसंग्रह जिस मसूतिकापुरमें बनाया था वह धारसे सात कोस दूर बगड़ीके पासका 'मसीद विलोदा' नामक गाँव है।
जंबुदीवपण्णत्ति (२५१-२६१) बारा नगर या बारां (कोटा) का राजा जो 'सत्ति भूपाल' लिखा है वह मेवाड़का गुहिलवंशी राजा शक्तिकुमार मालूम होता है। एक प्रतिमें 'सतिभूपालो' (शान्तिभूपालः) पाठ भी है । म ० म० ओझाजीके अनुसार इस राजाका एक शिलालेख वैशाख सुदी १ वि० स० १०३४ का आहाड़में (उदयपुरके समीप) मिला है । इसके समयके दो लेख और भी मिले हैं, परन्तु उनमेंसे संवत्के अंश जाते रहे हैं। पिछले दो लेख जैनमन्दिरोंमें मिले हैं । बारां उस समय मेवाड़ के ही अन्तर्गत था। यदि इसी गुहिलवंशीय या शक्तिकुमारके समयमें जंबुदीवपण्यत्तिको रचना हुई हो, तो उसके कर्ता पद्मनन्दिका समय विक्रमकी ग्यारहवीं शताब्दि मानना चाहिए ।
पद्मचरित और पउमचरिय (२७२-२९२ ) १-उद्योतनसूरिने श० सं० ७०० में बनाई हुई अपनी 'कुवलयमाला कथा' में पउमचरियके कर्ता विमलसूरिके ' हरिवंशपुराण' नामक ग्रन्थका भी १ देखो, राजपूतानेका इतिहास द्वि० भा०, पृ० ४३३-३७