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छान-बीन
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" स्वामी, जैसे बने तैसे तारो, मेरी करनी कछु न विचारो।” यह ईश्वरवाद नहीं तो और क्या है ? पौराणिक लेखकोंने इस विषयकी ओर और भी अधिक ध्यान दिया है । उन्होंने अपनी कवि-सुलभ कल्पनाओंसे जैनधर्मके उपासकों के लिए प्रायः वे सभी मानतायें सुलभ कर देनेका प्रयत्न किया है जो अन्य ईश्वरवादियोंमें प्रचलित हैं । वे कहते हैं कि भगवान ऋषभदेव सृष्टिकर्ता ब्रह्मा है क्योंकि उन्होंने ब्राह्मण क्षत्रिय आदि वर्गों को उत्पन्न किया था, उनके मुखसे चतुरनुयोगरूप चार वेद उत्पन्न हुए । वे सृष्टि के रक्षक थे, इसलिए विष्णु कहलाये, विष्णुके समान उनके भी सहस्र नाम हैं, वे कल्याणके करनेवाले हैं अतएव शंकर भी हैं । इस प्रकारकी और भी सैकड़ों बातें हैं। ___ और जैनधर्मके वर्तमान अनुयायियोंपर तो ईश्वरवादका रंग बेतरह चढ़ा हुआ है। उनमें १०० मेंसे लगभग ९० मनुष्य ऐसे होंगे जो औरोंके सम्मान जिन भगवानको ही सुख-दुख देनेवाले समझते हैं, उन्हींका नाम जपा करते हैं, उन्हींकी सौगन्ध खाते हैं और कहते हैं कि हमारा अमुक काम सिद्ध हो जायगा तो हम भगवानका अमुक उत्सव करेंगे । शिखरजी या गिरनारजीकी यात्रा करेंगे, अथवा मन्दिर बनवा देंगे। गरज यह कि ये लोग पूरे ईश्वरवादी बन रहे हैं। अन्तर केवल यही है कि इनके भगवान श्रीकृष्ण, रामचन्द्र, शिव आदि न होकर ऋषभदेव, पार्श्वनाथ आदि हैं । यह सब उनके पड़ोसके धर्मों का ही प्रभाव है। ___ गरज यह कि वर्तमान जैनधर्मपर जो कुछ ईश्वरवादकी छाया दिखाई देती है वह स्वयं उसकी अपनी वस्तु नहीं है, किन्तु दूसरोंके प्रभावसे उत्पन्न हुई है। वास्तवमें जैनधर्म अनीश्वरवादी है और धर्मों के इतिहासमें यही उसकी सबसे बड़ी विशेषता तथा महत्ता है । गतानुगतिकताके प्रवाहमें न बहकर, युक्ति और प्रमाणोंसे असिद्ध ईश्वरको माननेसे स्पष्ट इंकार कर देना कोई साधारण बात नहीं ।