Book Title: Jain Sahitya aur Itihas
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 582
________________ ५५४ जैनसाहित्य और इतिहास इस समय भूमिहार लोग अपनेको ' ब्राह्मण' कहते हैं; परन्तु दूसरे लोग उन्हें ब्राह्मण नहीं मानते । वास्तवमें वे क्षत्रिय ही हैं और उनके नाम सिंहान्त होते हैं । इस वंशमें अब भी बहुतसे ज़मीन्दार और राजा हैं । ८-शूद्रोंके लिए जिनमूर्तियाँ ? प्रायः जैनमन्दिरोंके शिखरोंपर और दरवाजोंकी चौखटोंपर जिनमूर्तियाँ दिखलाई देती हैं । उनके विषयमें कुछ सजनोंने, कुछ ही समयसे यह कहना शुरू किया है कि उक्त मूर्तियाँ शूद्रों और अस्पृश्योंके लिए स्थापित की जाती रही हैं, जिससे वे मन्दिरोंमें प्रवेश किये बिना बाहरसे ही भगवान्के दर्शनोंका सौभाग्य प्राप्त कर सकें । यह बात कहने सुनने में तो बहुत अच्छी मालूम होती है, परन्तु अभी तक इस विषयमें किसी शिल्पशास्त्र, प्रतिष्ठा-पाठ या पूजा-प्रकरणका कोई प्रमाण उपस्थित नहीं किया गया है और यह बात कुछ समझमें भी नहीं आती है कि जो लोग दर्शन-पूजन-पाठादिके अधिकारी ही नहीं माने जाते हैं, उनके लिए शिखरोंपर या द्वारोंपर मूर्तियाँ जड़नेका परिश्रम क्यों आवश्यक समझा गया होगा । यदि शूद्रों या अस्पृश्योंको दूरसे दर्शन करने देना ही अभीष्ट होता, और उनके आने जानेसे मन्दिरोंका भीतरी भाग ही अपवित्र होनेकी आशंका होती, तब तो मन्दिरों के बाहर दीवालोंमें या आगे खुले चबूतरोंपर ही मूर्तियाँ स्थापित कर दी जाती, और ऐसा प्रबन्ध कर दिया जाता, जिससे वे समीप आये बिना दूरसे ही बन्दना कर लेते । इसके सिवाय जो लोग इन अभागे प्राणियोंको दूरसे दर्शन करने देने में कोई हानि नहीं समझते हैं, उन्होंने क्या कभी यह भी सोचा है कि दूरसे दर्शन करनेवाले उक्त प्रतिमाओंके उद्देश्यसे पुष्पादि भी तो चढ़ा सकते हैं ? तब क्या दरसे किया हुआ पूजन पूजन नहीं कहलायगा? और क्या मन्दिर मूर्तिसे भी अधिक पवित्र होता है ? मेरी समझमें तो शिखरपर या द्वारपर जो मूर्तियाँ रहती हैं, उनका उद्देश्य केवल यह प्रकट करना होता है कि उस मन्दिरमें कौन सा देव प्रतिष्ठित है अर्थात् वह किस देवताका मन्दिर है । वास्तवमें वह मुख्य देवका संक्षिप्त चिह्न होता है जिससे लोग दूरसे ही पहिचान जायँ कि यह अमुकका मंदिर है। अभी मैं पूने गया था, वहाँ संगमपर ऐसे बहुतसे मन्दिर देखे, जिनके द्वारोंपर उन मन्दिरोंके मुख्य देवों की छोटी छोटी प्रतिकृतियाँ लगी हुई हैं।

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