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जैन साहित्य और इतिहास
( Slave ) है । इस समय नौकरका स्वतन्त्र व्यक्तित्व है । वह पैसा लेकर काम करता है, गुलाम नहीं होता । कौटिलीय अर्थशास्त्र में गुलाम के लिए दास, और नौकरके लिए कर्मकर शब्दों का व्यवहार किया गया है । अनगारधर्मामृत अध्याय ४, श्लोक १२१ की टीकामें स्वयं पं० अशाधरने दास शब्दका अर्थ किया है - " दासः क्रयक्रीतः कर्मकरः I अर्थात् खरीदा हुआ काम करनेवाला। पं० राजमल्लजीने लाटीसाहिता के छठे सर्ग में लिखा है
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दासकर्मरता दासी क्रीता वा स्वीकृतासती ।
तत्संख्या व्रतशुद्ध्यर्थं कर्तव्या सानतिक्रमात् ॥ १५० ॥ यथा दासी तथा दासः ... ।
अर्थात् - दास कर्म करनेवाली दासियाँ, चाहे वे खरीदी हुई हों और चाहे स्वीकार की हुई, उनकी संख्या भी व्रतकी शुद्धि के लिए बिना अतिक्रमके नियत कर लेनी चाहिए | इसी तरह दासों की भी..
पं० राजमलजीने और भी लिखा है
देवशास्त्रगुरून्नत्वा बन्धुवर्गात्मसाक्षिकम् ।
पत्नी परिग्रहीता स्यात्तदन्या चेटिका मता ॥
अर्थात् — जिसके साथ विधिपूर्वक बन्धुजनों के समक्ष ब्याह किया गया हो वह पत्नी और यह नहीं किया गया हो वह चेटिका या दासी । आगे और स्पष्ट किया है
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पाणिग्रहणशून्या चेच्चेटिका सुरतप्रिया । ला० सं० १८४ । चेटिका भोगपत्नी च द्वयोर्भोगांगमात्रतः ॥ १८५ ॥
अर्थात् चेटिका सुरतप्रिया होती है और वह केवल भोगकी चीज़ है । इससे मालूम होता है कि काम करनेवाली दासियाँ खरीदी जाती थीं और उनमें से कुछ स्वीकार भी कर ली जाती थीं । स्वीकृताका अर्थ शायद रखेल है । ' परिग्रहीता ' शब्द भी शायद इसीका पर्यायवाची है - परिग्रहणकी हुई या रखी हुई । यशस्तिलकर्मे श्रीसोमदेवसूरिने लिखा है
वधू- वित्तस्त्रियो मुक्त्वा सर्वत्रान्यत्र तज्जने । माता श्वसा तनूजेति मतिर्ब्रह्म गृहाश्रमे ॥
अर्थात् पत्नी और वित्त स्त्रीको छोड़कर अन्य सब स्त्रियोंको माता, बहिन और बेटी समझना गृहस्थाश्रमका ब्रह्मचर्याणुव्रत है । वित्तका अर्थ धन होता है, इसलिए