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कुछ अप्राप्य ग्रन्थ
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धवल महाकविने भी अपने अपभ्रंश हरिवंश-पुराणमें रविपेणके पद्मचरितके साथ महासेनकी सुलोचना कथाका उल्लेख किया हैमुणि महसेणु सुलोयणु जेण, पउमचरिउ मुणि रविसेणेण ।
४-प्रभंजनका यशोधरचरित मुनि वासवसेनने यशोधरचरितमें लिखा है
प्रभंजनादिभिः पूर्वं हरिषेणसमन्वितैः ।
__ यदुक्तं तत्कथं शक्यं मया बालेन भाषितुम् ।। अर्थात् हरिपेण प्रभंजनादि कवियोंने पहले जो कुछ कहा है, वह मुझ बालकसे कैसे कहा जा सकता है ? इसमें मालूम होता है कि प्रभंजन कविका बनाया हुआ यशोधरचरित नामका ग्रन्थ वासवसेनके पहले था और जान पड़ता है कि इसीका उल्लेख कुवलयमालामें भी किया गया है
सत्तण जो जसहगे जसहरचरिएण जणवए पयडो।
कलिमलपभंजणो च्चिय पभंजणो आसि रायरिसी ॥ ४० ॥ अर्थात् जो शत्रुओंके यशका हरण करनेवाला था और जो यशोधरचरितके कारण जनपदमें प्रकट या प्रसिद्ध हुआ, वह कलिके पापोंका प्रभंजन करनेवाला प्रभजन नामका राजर्षि है । अर्थात् प्रभंजन पहले राजा थे और पीछे उन्होंने जिनदीक्षा ले ली थी।
यह ग्रन्थ भी सम्भवतः प्राकृतमें होगा।