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छान-बीन
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इन दोनोंके ' रेखा' नामक पुत्र हुए जिनका रणथंभोरमें शेरशाह नरेन्द्रने सम्मान किया। इनकी पत्नीका नाम 'रेखा-श्री' था-भार्यास्य सद्गुणोपेता नाम्ना रेखासिरिः स्मृता।'
इन्हींके पुत्र ग्रन्थकर्ता जिनदास हुए। वैद्य जिनदासकी पत्नीका नाम भी दिया है परन्तु वह ठीक ठीक पढ़ा नहीं गया ।
बम्बईके ऐ० १० सरस्वतीभवनमें धर्मशर्माभ्युदय-टीकाकी सं० १६५२ की लिखी हुई एक प्रति है, उसमें गोधा गोत्रके सा० पंचाइणकी बड़ी लम्बी वंश-प्रशस्ति दी है, उसमें सा० नूना भार्या नुनसिरि, सा० जीवा भार्या जीवलदे, सा० पूना भार्या पुनसिरि, सा० मल्लिदास भार्या मल्लिसिरि आदि पति-पत्नियोंके नाम दिये हैं । ___ करकंडुचरिउ (कारंजा-सीरीज ) की प्रतिके अन्तमें यह प्रशस्ति दी है" संवत् १५९७ वर्षे......खंडेलवालान्वये गोधागोत्रे साहा नांदा ( नयण) तद्भार्या नयणश्री, तत्पुत्र साह मेहा तद्भार्या द्वे प्रथमा मेहादे द्वितीया सुहागदे, तत्पुत्रौ द्वौ प्रथम साह करमा......”
मुनि श्रीजिनविजयजी द्वारा सम्पादित 'प्राचीन जैन-लेख-संग्रह में पाली ग्रामका एक लेख (नं० ४३३) इस प्रकारका है.---" सं० १५०७ वर्षे फा० व० ३ बुधे ओशवंशे वहरा हीरा भा० हीरादे, पु० व० पेता भा० पेतलदे, पु० व हिमति पितृश्रेयसे श्रीशान्तिनाथबिंब कारितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिश्रीजिनसागरसूरिभिः प्रतिष्ठिता।” ___ इस तरहके और भी अनेक उदाहरण ढूँढ़कर दिये जा सकते हैं । यह पद्धति जान पड़ती है अब भी कहीं कहीं प्रचलित है । आठ नव वर्ष पहले घाटकोपर ( बम्बईका उपनगर ) में में जिन धनी सेठके मकानमें रहता था, वे दो भाई हैं
और कच्छी हैं। उनमें एक भाईका नाम बेलजी और उनकी पत्नीका नाम बेलाबहू है। दूसरे भाईका नाम मैं भूल गया हूँ, परन्तु उनकी पत्नीका नाम भी उनके नामके साथ ही 'बहू' जोड़कर रखा हुआ है।
करीब करीब सभी जगह स्त्रीके दो नाम होते हैं एक पिताके घरका और दूसरा पतिके घरका । पतिके घर आनेपर उसे नया नाम दिया जाता है । कोई नया नाम रखनेकी अपेक्षा पतिके नामके साथ श्री, देवी, ही, बहू आदि जोड़कर नया नाम बना लेना अधिक सुभीतेका है। परन्तु स्त्रियाँ अपने पतिका नाम