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माघनन्दि योगीन्द्र ये ' शास्त्रसारसमुच्चय' नामक सूत्रग्रन्थके कर्ता हैं । इस नामके भी कई आचार्य हो गये हैं, इस कारण नहीं कहा जा सकता कि इसके कर्त्ता कौनसे माघनन्दि हैं। कर्नाटक-कवि-चरित्रके अनुसार एक माघनन्दिका समय ईस्वी सन् १२६० ( वि० संवत् १३१७ ) है और उन्होंने इस शास्त्रसारसमुच्चयपर एक कनड़ी टीका भी लिखी है तथा माघनन्दि-श्रावकाचारके कर्ता भी वही हैं । इससे मालूम होता है कि शास्त्रसारसमुच्चय ( मूल ) के कर्ता इनसे पहले हुए हैं और उनका समय भी विक्रमकी चौदहवीं शताब्दिसे पहले समझना चाहिए । __ मद्रासकी ओरियण्टल लायब्रेरीमें 'प्रतिष्ठाकल्पटिप्पण' या 'जिनसंहिता' नामका एक ग्रन्थ है। उसकी उत्थानिका और अन्तकी पुष्पिकांसे मालूम होता है कि प्रतिष्ठाकल्प टिप्पणके कर्ता कुमुन्देन्दु या कुमुदचन्द्र माघनन्दिसिद्धान्तचक्रवर्तीके शिष्य थे।
माघनन्दि श्रावकाचार और शास्त्रसारसमुच्चयके टीकाकार माघनन्दिने कर्नाटककविचरित्रके अनुसार कुमुदेन्दुको अपना गुरु बतलाया है। संभव है कि सिद्धान्तसारसमुच्चयके कर्त्ता माघनन्दि (पहले ) के ही शिष्य ये कुमुदेन्दु हों जिनका उक्त प्रतिष्ठाकल्प-टिप्पण नामक ग्रन्थ है और उन्हींके शिष्य श्रावकाचारके कर्त्ता दूसरे माघनन्दि हों। अक्सर राजाओंके समान मुनियोंमें भी दादा और पोतेके नाम एक-से रक्खे जाते रहे हैं । यदि यह ठीक है तो शास्त्रसारसमुच्चयके कर्ताका समय ५० वर्ष और पहले अर्थात् विक्रमसंवत् १२६७ के लगभग मानना चाहिए।
१-श्रीमाघनन्दिसिद्धान्तचक्रवर्तितनूभवः ।
कुमुदेन्दुरहं वच्मि प्रतिष्ठाकल्पटिप्पणम् ।। २-इति श्रीमाघनन्दिसिद्धान्तचक्रवर्तितनूभवचतुर्विधपाण्डित्यचक्रवर्तिश्रीवादिकुमुदचन्द्रमुनीन्द्रविरचिते जिनसंहिताटिप्पणे पृज्याजकपूजकाचार्यपूजाफलप्रतिपादनं समाप्तम् ।।