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तीन महान् ग्रन्थकर्ता
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थे । श्रीपालको तो उन्होंने अपनी जयधवला टीकाका संपालक या पोषक कहा है' और अपने आदिपुराणमें भी उनकी प्रशंसा की है ।
आदिपुराणकी उत्थानिकामें जिनसेनने लिखा है कि तपोलक्ष्मीके जन्मस्थान, श्रुत और प्रशमके निधि, विद्वानोंके अगुए जयसेन गुरु मेरी रक्षा करें। इससे मालूम होता है कि ये भी वीरसेन स्वामीके गुरु-भाई होंगे और इसलिए जिनसेनने इनका भी गुरुरूपसे स्मरण किया है।
वीरसेन स्वामीने चित्रकूटमें जाकर एलाचार्यके समीप सिद्धान्त-ग्रन्थोंका अध्ययन किया था और तब उन्होंने जयधवला टीका लिखी थी। अत एव एलाचार्य भी उनके गुरु थे। परन्तु वे किसके शिष्य थे और किस अन्वयके थे, इसका कोई उल्लेख नहीं मिला । कुन्दकुन्दाचार्यका भी एक नाम एलाचार्य बतलाया जाता है परन्तु उनसे ये भिन्न हैं ।
आर्य चन्द्रसेन
आर्य आर्यनन्दि
वीरसेन
जयसेन
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दशरथ गुरु जिनसेन विनयसेन श्रीपाल पद्मसेन देवसेन
कुमारसेन ( काष्ठासंघी)
गुणभद्र
लोकसेन
१-टीका श्रीजयचिह्नितोऽरु धवला सूत्रार्थसंद्योतिनी।।
स्थेयादारविचन्द्रमुज्ज्वलतप:श्रीपालसंपालिता ॥ ४३ ।।-ज० ध० २-भट्टाकलंक-श्रीपाल-पात्रकेसरिणां गुणाः ।
विदुषां हृदयारूढा हारायन्तेति निर्मलाः ॥ ५३ ॥-आ० पु०