________________
५१२
जैनसाहित्य और इतिहास
ही अधिक मान ली जाय तो वीरसेन स्वामीका जन्म-काल श० सं० ६६० के लगभग समझना चाहिए ।
उन्होंने अपनी' धवला टीका श० सं० ७३८ में समाप्त की है। यदि उसके बाद तत्काल ही जयधवला टीका प्रारम्भ कर दी हो, जो कि दुर्भाग्यसे पूरी न हो सकी, तो उसके २० हजार श्लोकोंकी रचनामें निदान सात आठ वर्ष जरूर लग गये होंगे और इस हिसाबसे उनका स्वर्गवास श० सं० ७४५ के लगभग ८५ वर्षकी उम्रमें हुआ होगा। ___ अब जिनसेन स्वामीको लीजिए । ऊपर उनका जन्म श० ६७५ के लगभग अनुमान किया गया है और जयधवला टीका उन्होंने श० सं० ७५९ में समाप्त की है । अर्थात् उस समय उनकी उम्र ८४ वर्षकी होगी। जयधवलाके बाद ही उन्होंने अपना आदिपुराण शुरू किया होगा जिसे कि वे पूरा न कर सके । उसके लगभग दस हजार श्लोकोंकी रचनामें उनकी वृद्धावस्थाको देखते हुए ५-६ वर्षसे कम न लगे होंगे और इस तरह श० सं० ७६५ के लगभग ९० वर्षकी उम्रमें उनका स्वर्गवास हुआ होगा ।
इस तरह हम देखते हैं कि ये दोनों महान् ग्रन्थकर्ता खूब दीर्घजीवी हुए । भदन्त गुणभद्रकी उम्र यदि गुरुके स्वर्गवासके समय २५ वर्षकी मान १ अठतीसम्हि सतसए विक्कमरायंकिए सु-सगणामे ।
वासे सुतेरसीए भाणुविलग्गे धवलपक्खे ॥ ६ ॥ आदि २-एकान्नषष्टिसमधिकसप्तशताब्देषु शकनरेन्द्रस्य ।
समतीतेषु समाप्ता जयधवला प्राभृतव्याख्या ॥ ३-आदिपुराणकी उत्थानिकामें जिनसेनने अपने गुरुको सिद्धान्त-ग्रन्थोंके उपनिबन्धोंका या टीकाओंका कर्ता लिखा है-" सिद्धान्तोपनिबन्धानां विधातुर्मद्गुरोश्चिरम् । मन्मनः सरसि स्थेयान्मृदुपादकुशेशयम् ॥ ५७ ” इससे धवला और जयधवला दोनों टीकाओंका मतलब निकलता है । अर्थात् आदिपुराणके प्रारंभ करते समय जयधवला ( २० हजार श्लोक ) बन चुकी थी और गुरुकी मृत्यु हो चुकी थी। इसी लिए उनके चरण-कमलोंको अपने मनमें स्थिर रखनेकी भी इच्छा प्रकट की गई है । बहुवचनान्त · उपनिबन्धानां ' पद होनेसे एक और सिद्धान्त ग्रंथकी टीकाकी भी इससे ध्वनि निकलती है । शायद वह · सिद्धभूपद्धतिटीका ' ही हो।