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जैनसाहित्य और इतिहास
प्रोतलिपियाँ लिखना लिखाना चाहिए । बस, यहीं गुणभद्रस्वामीका वक्तव्य समाप्त हो जाता है और वास्तव में इसके बाद कुछ कहने के लिए रह भी नहीं जाता ।
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इसके बाद २८ वें पद्यसे लोकसेनकी लिखी हुई प्रशस्ति शुरू होती है जिसमें कहा है कि उन गुणभद्रस्वामी के शिष्यों में मुख्य लोकसेन हुआ जिसने इस पुराण में निरन्तर गुरु-विनयरूप सहायता देकर सज्जनद्वारा बहुत मान्यता प्राप्त की थी । फिर २९-३०-३१ नम्बर के पद्योंमें राष्ट्रकूट अकालवर्षकी वीरताकी प्रशंसा की है जो उस समय अखिल पृथ्वीका पालन करता था । फिर ३२ से ३६ तकके पद्योंमें कहा है कि जब अकालवर्ष के सामन्त लोकादित्य अंकापुर राजधानीसे सारे वनवास देशका शासन करते थे, तब श० सं० ८२० के अमुक मुहूर्तमें इस पवित्र और सर्वसाररूप पुराणकी श्रेष्ठ भव्यजनों द्वारा पूजा की गई । फिर ३७ वें पद्य में यह कहकर लोकसेनने अपना वक्तव्य समाप्त किया है कि यह महापुराण चिरकालतक सज्जनोंकी वाणी और चित्तमें स्थिर रहे ।
इस तरह ये गुणभद्र और लोकसेनकी लिखी हुई दो जुदी जुदी प्रशस्तियाँ हैं, जो मिलकर एक हो गई हैं । पहली प्रशस्ति तो स्वयं ग्रन्थकर्ताकी ही है और वह ग्रन्थसमाप्तिके समय की लिखी हुई है; परन्तु दूसरी प्रशस्ति उनके शिष्य लोकसेनकी है जिसे उन्होंने उस समय लिखा है जब कि उनके गुरुके इस महान् ग्रन्थका विधिपूर्वक पूजामहोत्सव किया गया था । यह पूजामहोत्सव ही श० सं० ८२० की उक्त तिथि और मुहूर्त में किया गया था, ग्रन्थ- समाप्तकी तिथि वह नहीं है । ग्रन्थ-समाप्तिकी तिथि गुणभद्रस्वामीने लिखी ही नहीं ।
इससे अब हम इस निर्णयपर पहुँचते हैं कि गुणभद्रस्वामीने अपने गुरुके अधूरे ग्रन्थको उनके स्वर्गवास होनेके अनतिकाल बाद ही लिखना शुरू कर दिया होगा, और वे उसके लगभग साढ़े नौ हजार श्लोक पाँच सात वर्षोंमे लिख सके होंगे ।
बहुत संभव है कि महापुराणका उक्त पूजामहोत्सव लोकसेनने अपने गुरु गुणभद्रस्वामी के स्वर्गवास होनेपर ही किया हो। क्योंकि लोकसेनकी प्रशस्तिसे ऐसा नहीं मालूम होता कि उनके गुरु उस समय जीवित थे ।
१ देखा पृ० ४९९ के पाद-टिप्पणका २८ वाँ पद्य ।
२ इसके आगे पाँच पद्य और हैं जो सब प्रतियों में नहीं मिलते। उदाहरणार्थं टी० एस० कुप्पू स्वामी शास्त्रीके जीवंधर चरित्रमें जो उत्तरपुराणकी प्रशस्ति उद्धृत है, उसमें ये ३८ से ४२ तकके पद्य नहीं हैं । इन पद्योंमें महापुराणकी महिमा वर्णन की गई है । संभव है, ये पद्य किसी अन्य के लिखे हुए हां और पीछेसे शामिल हो गये हों ।