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तीन महान् ग्रन्थकर्ता
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जगत्तुंगदेवके श० सं० ७१६ से ७३५ तकके अनक शिलालेख मिले हैं। ये ध्रुवराजके पुत्र और उत्तराधिकारी थे। ये बड़े प्रतापी थे । उत्तरमें मालवासे लेकर दक्षिणमें कांचीतकके राजा इनकी आज्ञाका पालन करते थे और नर्मदा और तुंगभद्राके बीच के सारे देशपर इनका अधिकार था । इन्होंने अपने जीते जी ही अपने पुत्र अमोघवर्षको राज्य द दिया था। ये श० सं० ७१५ के लगभग सिंहासनपर बैठे होंगे और ७३७ के लगभग इन्होंने गदी छोड़ दी होगी। __ अमोघवर्ष (प्रथम)-- ये जगत्तुंगदेव या गोविन्द (तृतीय)के पुत्र थे । इनका घरू नाम बोद्दणराय था । नपतुंग, शर्व, शण्ड, अतिशय धवल, वीरनारायण, पृथिवीवल्लभ, लक्ष्मीवल्लभ, महाराजाधिराज, मटार, परमभट्टारक आदि इनकी उपाधियाँ थीं। ये भी बड़े पराक्रमी थे। इन्होंने अनेक युद्धों में विजय प्राप्त करके अनेक राजाओंको भस्म कर दिया था। बैंगीके चालुक्य नरेशको मारकर यमराजको सन्तुष्ट किया था। नवसारीके दानपत्रमें लिखा है कि अमोघवर्ष चालुक्य समुद्रमें डूबी हुई राष्ट्रकूटोंकी लक्ष्मीका पृथ्वीके समान उद्धार करके वीरनारायण कहलाये । इन्होंने बहुत बड़ी उम्र पाई और लगभग ६३ वर्ष तक राज्य किया ।
चावम्हि तरणिवुत्ते सिंधे सुकम्मि मीणे चंदम्मि । कत्तियमासे एसा टीका हु समाणिआ धवला ॥ ८ ॥ बोद्दणरायणरिंदे नरिंदचूडामणिम्हि मुंजते । सिद्धतगंथमस्थिय गुरुप्पसाएण विगत्ता सा ।। ९ ।।
-धवला १ इनका श० सं० ७३५ का एक दानपत्र कदंब ( मैसूर ) में मिला है, जिसमें विजयकीतिके शिष्य अर्ककीतिको जैनमन्दिरके लिए दान देनेका उल्लेख है। इ० ए० जि० १२ पृ० १३।
२ यह नाम सबसे पहले धवलामें ही मिला है। इतिहासशांकी अभीतक इसका पता नहीं है। _३ चालुक्याभ्यूपखाद्यैर्जनितरतियमः प्रीणितो विंगवल्ल्याम् । इ० ए० जि० १२ पृ० २४९-५२
४ निमग्नां यश्चुलुक्याब्धौ रट्टराज्यश्रियं पुनः । पृथ्वीमिवोद्धरन् धीरो वीरनारायणोऽभवत् ।।