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तीन महान् ग्रन्थकर्त्ता
व्यामुग्धबुद्धि लोकसेनको बोध देनेके लिए यह ग्रन्थ बनाया गयो । परन्तु उत्तरपुराणकी प्रशस्तिके अनुसार लोकसेन गुणभद्र के अनेक शिष्यों में मुख्य शिष्य थे और वे विदितसकलशास्त्र, मुनीश और अविकलवृत्त थे । अतएव टीकाकारका उक्त कथन ठीक नहीं मालूम होता कि लोकसेन उनके गुरु भाई थे ।
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मण्डलपुरुष नामक विद्वान्का बनाया हुआ 'चूड़ामणि- निघण्टु' नामका द्राविड़ भाषाका एक कोश है । इस कोशमें उन्होंने अपनेको गुणभद्रका शिष्य बतलाया है और लिखा है कि उनकी प्रेरणा से ही यह कोश बनाया गया | परन्तु मंडलपुरुष के गुरु एक दूसरे ही गुणभद्र थे ।
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१ – बृहद्धर्मं भ्रातुर्लोकसेनस्य विषयव्या मुग्धबुद्धेः संबोधनव्याजेन सर्वसत्त्वोपकारकसन्मार्गमुपदर्शयितुकामो गुणभद्रदेवो निर्विघ्नतः शास्त्रपरिसमाप्त्यादिकं फलमभिलष न्निष्टदेवताविशेष नमस्कुर्वन्नाह -
२ विदितसकलशास्त्रो लोकसेनो मुनीशः कविरविकलवृत्तस्तस्य शिष्येषु मुख्यः । सततमिह पुराणे प्राप्य साहाय्यमुच्चै
र्गुरुविनयमनैपीन्मान्यतां स्वस्य सद्भिः ॥ २८ -- उत्तर - पु० प्र०
३ स्व० टी० एस०कुप्पूस्वामी शास्त्रीने जीवंधरचरित्रकी भूमिका में लिखा था कि चूड़ामणिनिवgh कर्त्ता मण्डलपुरुष दक्षिण अर्काट जिलेके तिरुनरुंगुड नामक गाँव के रहनेवाले थे और ज्योतिष तथा नीतिशास्त्र के महान् पंडित गुणभद्रके शिष्य थे । उसकी रचना उन्होंने कृष्ण के राज्यकालमें की थी जो कि उस राष्ट्रकूट अकालवर्षका ही दूसरा नाम है जिसके राज्य-कालमें गुणभद्रका उत्तरपुराण समाप्त हुआ था । इसीके आधारसे अपने ' जिनसेन और गुणभद्राचार्य ' ( विद्वद्रत्नमाला ) शीर्षक लेखमें हमने भी इन मंडलपुरुषको गुणभद्रका शिष्य लिखा था । परन्तु उसके बाद तामिल विद्वानोंमें इसकी बहुत चर्चा हुई और हो रही है । उसमें कहा गया है कि चूडामणिनिघंटु में जिस कृष्णका उल्लेख है वह विजयनगरका राजा कृष्णदेवार्य है जिसका समय ई० स० १५०९ से १५३० तक । इसके सिवाय चूडामणि -निघंटुकी भाषा भी बहुत पीछेकी है और उसमें दिवाकर और पिंगलन्दि नामके जिन कोशों का उल्लेख है, वे भी इतने पुराने नहीं हैं । अतएव मण्डलपुरुषके गुरु गुणभद्र कोई दूसरे ही गुणभद्र थे, उत्तरपुराणके कर्त्ता नहीं। एक नामके अनेक आचार्य होनेसे इस तरह की भ्रान्त धारगायें अक्सर हो जाया करती हैं।