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तीन महान् ग्रन्थकर्त्ता
वर्द्धमानपुराण ( ? ) – जिनसेनने अपने हरिवंशपुराण में लिखा हैयामिताभ्युदये पार्श्वजिनेन्द्र गुण संस्तुतिः ।
स्वामिनो जिनसेनस्य कीर्तिः संकीतयत्यसौ ॥ ४० ॥ वर्द्धमानपुराणोद्यदादित्योक्ति गभस्तयः ।
प्रस्फुरन्ति गिरीशान्तः स्फुटस्फटिकभित्तिषु ॥ ४१ ॥
पहले हमने इन दोनों श्लोकोंको जिनसेन स्वामीकी प्रशंसा करनेवाला समझा था और कल्पना की थी कि उनका बनाया हुआ कोई वर्द्धमानपुराण भी होगा । परन्तु अब अधिक विचार करनेसे इस निश्चयपर आना पड़ा है कि जिनसेनकी स्तुति इसके पहले के ४० वें श्लोक में ही समाप्त हो गई है और इस ४१ वें श्लोकमें किन्हीं अन्य ही आचार्य के वर्द्धमानपुराणकी प्रशंसा है जिनका नाम नहीं दिया गया है । इसके पहले ३५ वें श्लोक में भी बिना नाम दिये वे वरांगचरितकी प्रशंसा कर चुके हैं' । उक्त वर्द्धमानपुराण उस समय शायद इतना प्रसिद्ध था कि उसके कर्ताका नाम देनेकी उन्होंने आवश्यकता ही नहीं समझी ।
एक तो जो चौवीसों तीर्थकरों का चरित्र लिखने बैठा है, वह अलग से वर्द्धमानपुराण पहले लिख देगा, यह कुछ अद्भुत-सा लगता है, और दूसरे यदि जिनसेनका कोई वर्द्धमानपुराण होता तो गुणभद्र स्वामी उसका उल्लेख अवश्य करते, कमसे कम अपने महावीरपुराण ( उत्तरपुराणान्तर्गत ) में तो उसकी चर्चा करना उनके लिए आवश्यक ही हो जाता । इसके सिवाय अन्य भी किसी कविने कहीं इस वर्द्धमानपुराणका उल्लेख नहीं किया है । गरज यह कि द्वि० जिनसेनद्वारा प्रशंसित वर्द्धमानपुराण किसी अन्य ही आचार्यकी रचना है ।
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गुणभद्राचार्य
जिनसेन और दशरथ गुरुके शिष्य गुणभद्र स्वामी भी बहुत बड़े ग्रन्थकर्त्ता हुए। जैसा कि पहले कहा जा चुका है इन्होंने आदिपुराण के अन्तके १६२० श्लोक रचकर उसे पूरा किया और फिर उसके बाद उत्तरपुराण की रचना की जिसका परिमाण आठ हजार श्लोक है । जिस ढंगसे महापुराण प्रारंभ किया गया था और जितना
१ - वरांगनेव सर्वागैर्वरांगचरितार्थवाक् ।
कस्य नोत्पादयेद्गाढमनुरागं स्वगोचरम् ॥ ३५
इस वरांगचरित के कर्त्ता जटा - सिंहनन्दि हैं ।