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जैनसाहित्य और इतिहास
मान्यखेटको किस मालव - राजाने लूटा, इसका पता परमार राजा उदयादित्य के समयके उदयपुर ( ग्वालियर ) के शिलालेख में' परमार राजाओं की जो प्रशस्ति दी है उससे लगता है । उसके १२ वें पद्य में लिखा है कि हर्षदेवने खाट्टिगदेवकी राजलक्ष्मीको युद्धमें छीन लियाँ |
ये हर्षदेव ही धारानरेश थे, जो सीयक ( द्वितीय ) या सिंहभट भी कहलाते थे, और जैसा कि पहले बताया जा चुका है, जिनपर कृष्ण तृतीयने चढ़ाई की थी । खोगिदेव कृष्ण तृतीय के भाई और उत्तराधिकारी थे ।
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४ - महापुराण की रचना जिस सिद्धार्थ संवत्सर में शुरू की गई थी, उसी संवत्सर में सोमदेवसूरिने अपना यशस्तिलक चम्पू समाप्त किया था और उस समय कृष्ण तृतीयका पड़ाव मेलपाटीमें था । पुष्पदन्तने भी अपने ग्रंथ प्रारंभ के समय कृष्णराजका मेलपाटी में रहने का उल्लेख किया है । साथ ही यशस्तिलककी प्रशस्ति में उनको चोल आदि देशों का जीतनेवाला भी लिखा है । ऐसी दशा में पुष्पदन्तका कृष्ण तृतीय के समय में होना निःसंशयरूप से सिद्ध हो जाता है ।
पहले उक्त मेलपाटी में ही पुष्पदन्त पहुँचे थे, सिद्धार्थ संवत्सर में ही उन्होंने अपना महापुराण प्रारंभ किया था और यह सिद्धार्थ श० सं० ८८१ ही था । मेलपाटी या मेलाडि श० ८८१ में कृष्णराज थे, इसके और भी प्रमाण मिले हैं जो ऊपर दिये जा चुके हैं ।
इन सब प्रमाणोसे हम इस निष्कर्षपर पहुँचते हैं कि श० सं० ८८१ में पुष्पदन्त मेलपाटीमें भरत महामात्य से मिले और उनके अतिथि हुए । इसी साल उन्होंने महापुराण शुरू करके उसे श० सं० ८८७ में समाप्त किया । इसके बाद उन्होंने नागकुमार-चरित और यशोधर-चरित बनाये | यशोधर-चरितकी समाप्ति उस समय हुई जब मान्यखेट लूटा जा चुका था । यह श० सं० ८९४ के लगभगकी
१ एपिग्राफिआ इंडिका जिल्द १, पृ० २२६ ।
२ - श्रीहर्षदेव इति खोट्टिगदेवलक्ष्मी, जग्राह यो युधि नगादसमप्रतापः ।
३.
-“ शकनृपकालातीत संवत्सरशतेष्वष्टस्वेकाशीत्यधिकेषु गतेषु अंकतः ८८१ सिद्धार्थसंवत्सरान्तर्गतचेत्रमासमदनत्रयोदश्यां पाण्ड्य-सिंहल - चोल - चेरमप्रभृतीन्महीपतीन्प्रसाध्य मेलपाटी प्रवर्द्धमानराज्यप्रभावे श्रीकृष्णराजदेवे सति तत्पादपद्मोपजीविनः समधिगतपंचमहाशब्दमहासामन्ताधिपतेश्चालुक्य कुलजन्मनः सामन्त चूडामणेः श्रीमदरिकेसरिणः प्रथमपुत्रस्य श्रीमद्वद्दिगराजस्य लक्ष्मीप्रवर्धमानवसुंधरायां गंगधारायां विनिर्मापितमिदं काव्यमिति ।
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