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महाकवि वादीभसिंह
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कविका स्थान कविके ओडयदेव नामसे पं० के० भुजबलि शास्त्रीने उन्हें तमिल या द्राविड़प्रान्तका निवासी बतलाया है और बी० शेषगिरि राव एम० ए० ने कलिंग ( तेलुगु) के गंजाम जिलेके आसपासका । गंजाम जिला मद्रासक एकदम उत्तरमें है और अब उड़ीसामें जोड़ दिया गया है । वहाँ राज्यक सर्दारोंकी ओडेय और गोडेयनामकी दो जातियाँ है जिनमें पारस्परिक सम्बन्ध भी है। अतएव उनकी समझमें वादीभसिंह जन्मतः ओडेय या उड़िया सदार होंगे।
ओडयदेवका समय गद्यचिन्तामणि और क्षत्रचूड़ामणिका जो कथानक है, वह गुणभद्राचार्य के जीवंधरचरित्र ( उत्तरपुराणान्तर्गत ) से लिया गया है और दोनों में बहुत अधिक समानता है। इसका संकेत भी गद्यचिन्तामणिके निम्नलिखित पद्यमें मिलता है
निःसारभूतमपि बन्धनतन्तुजातं मूर्धा जनो वहति हि प्रसवानुसंगात् ।
जीवंधरप्रभवपुण्यपुराणयोगाद्वाक्यं ममाप्युभयलोकहितप्रदायि ॥ ९ ॥ यह जीवंधरचरित्रका उत्पादक पुण्य पुराण उत्तरपुराण ही जान पड़ता है जो श० सं० ७०५ (वि० सं० ८४० ) की रचना है, अतएव वादीभसिंह इससे पीछेके हैं।
सुप्रसिद्ध धाराधीश राजा भोजक विषयमें एक श्लोक प्रायः सभी विद्वानोंके लिए परिचित है जो कि उनके सभाकवि कालिदास ( अभिनव कालिदास या परिमल ) ने उनकी मृत्युका झूटा समाचार सुनकर कहा था
___ अद्य धारा निराधारा निरालम्बा सरस्वती।
पण्डिताः खण्डिताः सर्वे भोजराजे दिवं गते ।। और इसी श्लोकके पूर्वार्धकी छाया सत्यंधर महाराजके शोकके प्रसंगमें कही हुई गद्यचिन्तामणिकी इस उक्तिमें मिलती है-“ अद्य निराधारा धरा निरालम्बा सरस्वती।” स्व० कुप्पूस्वामी शास्त्रीने इससे अनुमान किया था कि गद्यचिन्तामणि भोजराजके बादकी रचना है। भोजदेवका राज्य-काल वि० सं० १०७६ से वि० १११२ तक माना जाता है ।
१ देखा, जैनसिद्धान्तभास्कर वर्ष ८, अंक २ पृ० ११७
२ भोजदेवके उत्तराधिकारी जयसिंहका वि० सं० १११२ का एक दानपत्र मिला है अतएव इससे कुछ पहले ही उनका स्वर्गवास हुआ होगा।