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चार वाग्भट
कुछ
उनमें से वाग्भट नामके अनेक ग्रन्थकर्त्ता हो गये हैं, ये हैं१ ' अष्टाङ्गहृदयके कर्ता वाग्भट - इस सुप्रसिद्ध वैद्यक ग्रन्थके कर्त्ता वाग्भट्ट सिन्धुदेशके रहनेवाले थे और इनके पिताका नाम सिंहगुप्त था । ये बहुत प्राचीन हैं और अधिकांश विद्वानों के मत से बौद्धधर्मके अनुयायी थे | पण्डितप्रवर आशाधरने इस ग्रन्थपर एक टीका लिखी थी, जो अभी तक अप्राप्य है । इसी कारण कुछ लोगोंका खयाल है कि ये जैन थे, परन्तु इसके लिए कोई प्रमाण नहीं है ।
२ नेमिनिर्वाण महाकाव्य के कर्त्ता वाग्भट | काव्यमाला में प्रकाशित नेमिनिर्वाणमें कविकी कोई प्रशस्ति नहीं है; परन्तु आराके जैनसिद्धान्तभवनमें संवत् १७२७ पौष कृष्ण अष्टमी शुक्रवारकी लिखी हुई जो प्रति है, उसके अन्तमें निम्नलिखित परिचय-पद्य दिया हुआ है और उससे कविका थोड़ा-सा परिचय मिल जाता है
अहिच्छत्रपुरोत्पन्न- प्राग्वाट कुलशालिनः ।
छाडस्य सुतश्चक्रे प्रबन्धं वाग्भटः कविः || ८७
श्रवणबेलगोलके स्व० पं० दौर्बलि जिनदास शास्त्री के पुस्तकालय में नमिनिर्वाणकी जो प्रति है उसमें भी यह पद्य लिखा हुआ है । इससे मालूम होता है कि
१ मैसूरके पंडित पद्मराजके पुस्तकालय में अष्टाङ्गहृदयकी जो प्रति कनड़ी लिपिमें लिखीहुई है उसके अन्तमें नीचे लिखे दो पद्य हैं
यज्जन्मनः सुकृतिनः खलु सिन्धुदेशे यः पुत्रवन्तमकरोद्भुवि सिंहगुप्तम् । तेनोक्तमेतदुभयज्ञभिषग्वरेण स्थानं समाप्तमिति
।। १
नमो वाडव ( वाग्भट ? ) तीर्थाय विदुषे लोकबन्धवे ।
येनेदं वैद्यवृद्धानां शास्त्रं संगृह्य निर्मितम् ॥ २
२ देखो, जैनहितैषी भाग १५, अंक ३-४ पृ० ७९ में पं० जुगल किशोरजी मुख्तारका नोट । ३ देखो, जैनहितैषी भाग ११, अंक ७-८ पृ० ४८२