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नेमिचरित-काव्य
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जिस चरणकी यह समस्यापूर्ति है उसमें यह शब्द पड़ा हुआ है; इसलिए कवि ऐसा करनेके लिए विवश था। मेघदूतकी वेत्रवती — मालवे' की 'बेतवा नदी है।
( ४ ) स्वर्णरेखा ( श्लोक ३२ और ४५ )—यह नदी गिरिनार पर्वतसे ही निकली है। छोटी-सी पहाड़ी नदी है । इसकी रेतमें सोनेका बहुत सूक्ष्म अंश अब भी पाया जाता है । इसे लोग ' सुवरणा' कहते हैं । आगे चलकर यह नदी शायद किसी दूसरे नामसे प्रसिद्ध हुई है।
(५) क्रीडापर्वत (श्लोक २७ )-' तुलसीश्याम' नाम पर्वतको लोग श्रीकृष्णका क्रीडापर्वत कहते हैं । इसपर रूठी रुक्मिणीकी मूर्ति बनी हुई है ।
(६) वामनराजाकी नगरी ( श्लोक ३२ )-इसको इम समय वणथली कहते हैं, जो कि 'वामनस्थली का अपभ्रंश है। यह जूनागढ़ स्टेटका एक कस्बा है, और जूनागढ़से लगभग ५ कोसकी दूरीपर है । यहाँ वह स्थान भी बना हुआ है, जहाँ विष्णुने तीन पैरसे पृथ्वी मापी थी।
(७) भद्रा ( श्लोक ५० )—यह नदी इस समय ' भादर' नामसे प्रसिद्ध है । यह जसदगके पासके पर्वतसे निकली और नवीबन्दरसे आगे अरब समुद्र में मिली है । कविने इसके संगमस्थलका ही वर्णन किया है।
(८) पौर ( श्लोक ५१)-यह इस समय पोरबन्दरके नामसे प्रसिद्ध है। भद्रा (भादर) को पार करनेके बाद कविने इस नगरके मिलनेकी बात कही है ।
(९) गन्धमादन और वेणुनपर्वत (श्लोक ५३ और ६१)- हालार और वरडो प्रान्तके बीचकी पर्वतश्रेणीको 'बरडो' कहते हैं । संभवतः इसी श्रेणीके किन्हीं दो पर्वतोंका नाम गन्धमादन और वेणुन होगा । कविने इन दोनोंका वर्णन पोरबन्दरसे आगे चलकर किया है।
मेघदूतके मूल श्लोक ११५ हैं और १० श्लोक क्षेपक बतलाये जाते हैं । पर इस काव्यमें क्षेपकसहित सभी श्लोकोंके चरणोंकी पूर्ति की गई है और इसीलिए इसमें १२५ श्लोक है । इससे मालूम होता है कि कविके समयमें उक्त क्षेपक श्लोक प्रचलित थे।
यह काव्य काव्यमालामें बहुत समय पहले छप चुका है । स्व० पं० उदयलालजी काशलीवालने इसका हिन्दी अनुवाद भी किया था, जो प्रकाशित हो
चुका है।